प्रार्थना की प्रचंड शक्ति

December 1989

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ब्रिटेन निवासी रिबेका बीयर्ड ने प्रार्थना के बारे में अपनी कृति 'एवरी मैंस सर्च' में कहा है कि, "प्रार्थना करते समय हमें शुभ परिवर्तन का ही ध्यान करना चाहिए। जिस बात के लिए हम चिंता प्रकट करते हैं, उसके विपरीत भाव का हमें चिंतन करना चाहिए। अशुभ का चिंतन करके उसे शुभ में परिवर्तित नहीं कर सकते। हमें उस परिस्थिति का स्वयं निर्माण करना होगा, जिसमें हम अपनी भावनाओं को सुस्थिर, संतुलित और सुचारु रूप से देखना चाहते हैं। इस तरह हम ईश्वरीय शक्ति के कार्य में आने वाले अवरोधों को समाप्त करते हैं।"

साइकिक हीलिंग की विशेषज्ञ रिबेका का समूचा जीवन प्रार्थना के दिव्य अनुभवों से भरा है। उन्होंने अपने जीवन की एक घटना का वर्णन इसी पुस्तक में किया है। वह लिखती हैं कि, "मेरे कार्यालय में एलिस न्यूटन नाम की स्त्री आई। वह कैंसर रोग से ग्रसित थी। उसका उदर बुरी तरह फूला हुआ था। वह अत्यंत कमजोर थी और हाँफ रही थी। डाॅक्टरों की चिकित्सा से कोई लाभ न होते देखकर मैंने उसे ईश्वर से प्रार्थना करने की सलाह दी।" उसने उसी दिन से प्रार्थना आरंभ कर दी और अपने स्वास्थ्य लाभ के समय की प्रतीक्षा करने लगी। एक रात उसने सपने में एक प्रकाश देखा तो वह जाग पड़ी, पाया कि उसका पेट समतल और पिचका हुआ था। डाॅक्टर ने एलिस से आते ही पूछा कि, "क्या खून निकला था, पानी बहा था?", "कुछ नहीं।" एलिस का जवाब सुनकर डाॅक्टर आश्चर्य में पड़ गया। एक सप्ताह बाद एलिस का वजन लिया गया, जो बीमारी के समय के वजन से अड़तीस पौंड कम था। पेट फूलने से ही इतना वजन अधिक था, जो अब समाप्त हो गया था।

रिबेका बियर्ड इस घटना का उल्लेख करते हुए लिखती हैं कि, "हमारी सारी परेशानियों, अक्षमताओं का कारण यह है कि हमने दैवी शक्ति के लिए अपने कपाट बंद कर रखे हैं। यदि हम इन्हें खोलकर दैवी शक्ति का आह्वान कर सकें तो सर्वत्र शिवत्व ही दृष्टिगोचर होगा। उसकी सहायता उपलब्ध हुए बिना न रहेगी।"

इस संदर्भ में महर्षि अरविंद कहा करते थे कि, "व्यक्ति की सच्ची प्रार्थना—पुकार—अभीप्सा ही अदृश्य शक्तियों की सहायता को अपने तक आकर्षित कर सकने में समर्थ होती है।" उन्होंने अपने निजी जीवन का उदाहरण देते हुए स्पष्ट किया है कि ऐसी सहायताएँ उन्हें अनेकों बार प्राप्त हुईं।

एक बार जब वह यौगिक साधन नामक ग्रंथ लिख रहे थे। उस समय राजा राममोहन राय की आत्मा ने आकर पुस्तक की विषयवस्तु को स्पष्ट किया। जब वह पुस्तक को लिखना प्रारंभ करते, उस समय वह उपस्थित हो जाती और जब तक लेखन चलता, उपस्थित रहती। ग्रंथ की समाप्ति तक ऐसा निरंतर चलता रहा।

साध्यवार्त्ता में नीरोद बरन को बताते हुए 18 दिसंबर 1938 को उन्होंने कहा था कि, "मैने सुपरमाइंड (अतिमानस) को समझने में पहले कई गलतियाँ की। मैं तब इसके मध्यवर्त्ती स्तरों को ठीक से नहीं जानता था। उन दिनों अलीपुर जेल में स्वामी विवेकानंद ने ध्यान के क्षणों में उपस्थित होकर मेरा मार्गदर्शन किया। चेतना की उच्चस्तरीय और गहरी परतों को दिखाया। भावी जीवन व कार्यक्रम के बारे में निर्देशन व मार्गदर्शन प्रदान किया। उन्होंने लगातार लगभग एक महीने आकर यह सहायता प्रदान की।" सच्चे मन से की गई प्रार्थना अपना सत्परिणाम प्रस्तुत किए बिना नहीं रहती। चाहे वह आत्मसंतोष एवं लोक-सम्मान के रूप में उभरे अथवा जनसहयोग तथा दैवी अनुग्रह के रूप में। प्रार्थना के परिणाम समष्टिमात्र के लिए कल्याणकारी होते हैं, इसीलिए कहा गया है कि, "प्रार्थना को दैनंदिन जीवन में भोजन से भी अधिक महत्त्व देना चाहिए।"


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