कहानी & सद्विचार

December 1989

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कहानी

बुद्ध के पास यदि कोई ध्यान सीखने जाता तो वे उससे कहते— "पहले तीन महीने मरघट पर रहकर आओ", किंतु वह कहता— "मैं ध्यान सीखने आया हूँ। मरघट से आपका क्या मतलब?" बुद्ध कहते कि, "जो आदमी मौत के प्रति नहीं जागा, वह अंतर्मुखी कैसे हो सकता है? पहले तुम देखकर आओ कि जिंदगी का अंतिम परिणाम क्या है? तब तुम्हारी बहिर्मुखता टूटेगी। पहले तुम देखो कि जो सफल हुए थे, वे कहाँ गए या जा रहे हैं? जिंदगी में जिन्होंने सब कुछ पा लिया, वे भी अरथी पर बँधे मरघट पहुँच रहे हैं। पहले तुम मरघट पर रहकर देख आओ कि बहिर्मुखता का अंतिम परिणाम क्या है? तब तुम अंतर्मुखी होने अर्थात ध्यान की विधा आसानी से सीख सकोगे। मुक्ति का मर्म समझ सकोगे।"


सद्विचार

किसी बात को इसलिए महत्त्व न दें कि वह पुरानी है या बड़े लोगों द्वारा अपनाई गई है। न किसी बात का महत्त्व इसलिए कम करें कि उसका प्रतिपादन कम समय से हुआ है अथवा थोड़े लोग उसका अनुकरण करते हैं। विवेक की कसौटी पर जो खरा उतरे, वह अपनाया जाना चाहिए, भले ही वह नया हो या पुराना। बड़ों ने किया है या छोटों ने कहा है, इसे भी महत्त्व नहीं मिलना चाहिए।


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