दुष्ट परिस्थितियों की तरह बंदर भी बड़े दुष्ट होते हैं। एक बार स्वामी विवेकानंद काशी में किसी जगह जा रहे थे। उस स्थान पर बहुत से बंदर रहते थे, जो आने-जाने वालों को अकारण ही तंग करने में बड़े विख्यात थे।
उनके साथ उन्होंने वही किया। स्वामी जी का रास्ते से गुजरना अच्छा न लगा। वे चिल्लाकर उनकी ओर दौड़े और पैरों में काटने लगे। उनसे छुटकारा पाना असंभव प्रतीत हुआ। वे तेजी से भागे, पर जितना भागते बंदर भी उतना दौड़ते और काटते। तभी एक अपरिचित स्वर सुनाई दिया-भागो मत सामना करो।” बस वे खड़े हो गए और ऐसी जोर की डाँट लगाई कि एक घुड़की में ही बंदर भाग खड़े हुए।
जीवन में जो कुछ भयानक है, उसका हमें साहसपूर्वक सामना करना पड़ेगा। परिस्थितियों से भागना कायरता है, कायर पुरुष कभी विजयी नहीं होगा। भय, कष्ट और अज्ञान का जब हम सामना करने को तैयार होंगे तभी वे हमारे सामने से भागेंगे।