सुविधा-साधन बढ़े हैं, समृद्धि भी आई है, जीवन पहले से ज्यादा संपन्न है, फिर भी लोग हायतौबा क्यों मचाते हैं? पच्चीस साल पहले की तुलना में आज हजार गुना समर्थ होते हुए भी लोग उदास और अकेले क्यों हैं? संबंधों में आए सूनापन और सन्नाटे की वजह तलाशे तभी अकेलापन टूटेगा और समाधान की दिशा मिलेगी।
जीवन का, स्थिरता का कोई भरोसा नहीं। इसलिए यही उचित है कि फिर कभी की प्रतीक्षा किए बिना हम श्रेष्ठ कार्य अविलंब करें।