आन्ध्र प्राँत बना तो उसके मुख्यमंत्री टी. प्रकाशन बनाए गए। तब वे 84 वर्ष के थे। टी. प्रकाशन ने गरीबी के दिन देखे थे। पिता की मृत्यु पहले ही हो गयी थी। उनकी माता एक छोटा होटल चलाकर परिवार का पालन करती। टी. प्रकाशन ने अपनी माँ के स्वावलंबन प्रधान जीवन से ही शिक्षा ली, पुरुषार्थ से वकालत पास की और इंग्लैंड जाकर बैरिस्टर बनकर आए। अपनी आजीविका का एक बड़ा भाग वे पिछड़ लोगों की सहायता में लगाते रहे।
स्वतंत्रता आंदोलन में उन्होंने अग्रिम पंक्ति में भाग लिया। दैनिक ‘स्वराज्य’ सफलतापूर्वक चलाया। जेल जाते रही और अनेकों में इसके लिए प्राण फूँकते रहे। उनके महामानव बनने के मूल में थे-माँ द्वारा बाल्यकाल में डाले गए संस्कार।”