गुरुगोविन्द चमकौर किले में आक्रमणकारियों से मोर्चा लेने के लिए सेना एकत्र कर रहे थे। किले में शरण लेते समय उनके दोनों पुत्र जोरावर व फतहसिंह पीछे छूट गए। सरहिंद से आए दो दूत गुरु गुरुगोविन्द सिंह को समाचार सुना रहे थे-बड़ी मुगल सेना चमकौर दुर्ग पर आक्रमण करने चल पड़ी है-इतना बोलकर वे चुप हो गए और रो पड़े। गुरु जी ने पूछा-आगे बताओ। रुक क्यों गए? जोरावर व फतहसिंह का क्या हुआ? कहीं ऐसा तो नहीं कि उन्होंने विधर्मी को समर्पण कर दिया हो, लोभ में आकर उनका धर्म स्वीकार कर लिया हो?”
दूतों ने रोते-रोते कहा- “नहीं गुरु जी! ऐसा न कहे। नवाब ने उन्हें धर्म न त्यागने व सेना के रहस्य न बताने के कारण जिंदा दीवार में चिनवा दिया है और वे सहर्ष बलि हो गए। यह समाचार सुनकर आपकी माता ने कमरे से कूदकर अपनी जान दे दी।” गुरु जी का मस्तक गर्व से ऊँचा हो गया। वे बोले-वे दोनों सच्चे धर्मवीर थे।”