‘सर्वेंट्स ऑफ पीपुल्स’ संस्था के सभापति लाला लाजपतराय का देहावसान हो गया था। गाँधी जी उस स्थान की पूर्ति करना चाहते थे, पर कम आजीविका में योग्य व्यक्ति कहाँ से मिले? कौन अपना सुख-वैभव त्यागकर जीवन समर्पित करे, यह एक बहुत बड़ा प्रश्न था। खबर टंडन जी को मिली। वे अपना तेरह सौ मासिक का बैंक मैनेजर का पद त्याग कर मात्र निर्वाह योग्य आजीविका में कार्य करना स्वीकार कर आ गए। गाँधी ने पूछा-इस पद को त्याग कर एक बहुत बड़ी हानि का आपको कोई दुःख नहीं है क्या?” राजर्षि बोले-बापू! लोकमंगल के लिए अपरिग्रही जीवन जीना ही नहीं यदि आप शरीर उत्सर्ग हेतु आदेश देंगे तो वह भी स्वीकार्य होगा।” सर्वविदित है कि बापू के समकालीन सहयोगियों में जो श्रद्धा-सम्मान टंडन जी को मिला, वह अन्य किसी को नहीं।