हनुमान सदा से सुग्रीव के सहयोगी थे, पर जब बालि ने सुग्रीव की संपदा एवं गृहिणी का अपहरण किया तो हनुमान प्रतिरोध में कोई पुरुषार्थ न दिखा सके। इससे प्रतीत होता है कि उस अवसर पर सुग्रीव की तरह हनुमान ने भी अपने को असमर्थ पाया होगा और जान बचाकर कहीं खोह-कंदरा का आश्रय लेने में ही भला देखा होगा, पर वे जब प्राण हथेली पर रख राजकाज के परमार्थ-प्रयोजनों में संलग्न हुए तो पर्वत उठाने, समुद्र लाँघने, अशोक उद्यान उजाड़ने, लंका जलाने जैसे असंभव पराक्रम दिखाने लगे। सुग्रीव पत्नी को रोकने में सर्वथा असमर्थ रहने पर भी अन्य देश में- समुद्र पार बसे अभेद्य दुर्ग को बेधकर वे सीता को मुक्त कराने में सफल हो गए।