ऋषियुग्म की सूक्ष्मसत्ता की परिजनों से अपनी

December 1999

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अखण्ड-ज्योति दिसंबर 1987 में प्रकाशित)

मनुष्य का प्राण जिन भाव संवेदनाओं के साथ गुँथ जाता है, उसी के अनुरूप उसकी विचारणाएँ और गतिविधियाँ चल पड़ती हैं। उत्थान और पतन का यही रहस्य है।

अखण्ड ज्योति का एक ही लक्ष्य है कि व्यक्ति के अन्तःकरण का छूने वाला ऐसा तत्त्वदर्शन प्रस्तुत किया जाए जो व्यक्तित्वों के परिष्कार में सुनिश्चित रूप से सफल हो सके। इसके लिए जिन तर्कों, तथ्यों, प्रमाण-प्रतिपादनों की आवश्यकता है, उन्हें विश्वसाहित्य के महासागर में गहरे गोते लगाकर पाठकों के समक्ष पहुँचाया जाता है। इसका गम्भीरतापूर्वक अध्ययन-अवगाहन जिनने भी किया है, वे द्रुतगति से आगे बढ़े हैं, ऊँचे उठे हैं।

आवश्यकता इस बात की है कि इस आलोक को घर-घर में प्रकाश करने का अवसर मिले, उसके द्वारा जन-जन के मानस के प्रखरता, प्रतिभा, शालीनता और महानता से अनुप्राणित करने का अवसर मिले।

इस अग्रगमन का एक ही सरल तरीका है कि वर्तमान सदस्य न्यूनतम पाँच-पाँच नये ग्राहक और बना देने का संकल्प करें। इसके लिए अपने प्रभाव-क्षेत्र में संपर्क साधें, पत्रिकाएँ दिखाएँ और उनके प्रभाव-महत्व को विस्तार पूर्वक समझाने का प्रयत्न करें। इतना साहस कर गुजरने पर कोई भी पाठक पाँच नये सदस्य बना सकता है। इतने भर से मिशन का कार्यक्षेत्र अबकी अपेक्षा पाँच गुना अधिक बढ़ सकता है, जो मानवी गरिमा को अक्षुण्ण बनाए रखने और अधिकाधिक सशक्त बनाने में समर्थ है। विश्वकल्याण की दिशा में इतना प्रयत्न भी महान योगदान देता रह सकता है। पाठकों से इसके लिए आग्रह भरा अनुरोध किया जा रहा है।

श्रीराम शर्मा भगवती देवी शर्मा

*समाप्त*


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