दुर्व्यसनों में रस (कहानी)

January 1990

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नदी में एक कंबल जैसा बहता दिखा। तट पर खड़े साधुओं में से एक उसे पकड़ने के लिए कूद पड़ा। कंबल तक पहुँचा तो प्रतीत हुआ कि वह रीछ है।

रीछ ने साधु को जकड़कर पकड़ लिया। छुड़ाने पर भी छूट न सका और दोनों साथ-साथ डूबने-उतराने लगे।

किनारे पर खड़े दूसरे साधू ने आवाज लगाई कि, "झंझट में मत पड़ो। कंबल को छोड़ दो।" साधु ने डूबते-उतराते कहा—" मैं तो छोड़ना चाहता हूँ, पर यह कंबल ही मुझे नहीं छोड़ता।

लोग पहले तो दुर्व्यसनों में रस की बात सोचकर उन्हें पकड़ लेते हैं। पर कुछ ही दिन में दुर्व्यसन ही रीछ की तरह मनुष्य को जकड़ लेते है और उसकी दुर्गति बनाते रहते हैं।


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