हुगली के सरकारी वकील स्वर्गीय शशिभूषण बंधोपाध्याय एक दिन जून के महीने में दोपहर की कड़कती लू में किराए की गाड़ी में बैठकर एक प्रतिष्ठित व्यक्ति के यहाँ आवयश्क कार्यवश पहुँचे। यथोचित सत्कार के बाद उस व्यक्ति ने कहा—"इस भयंकर गर्मी में आपने स्वयं आने का कष्ट क्यों किया ? किसी नौकर के हाथों कागजात भेज दिए होते। इतना सुनकर शशिभूषण जी कुछ गंभीर होकर बोले—" पहले मेरा विचार नौकर ही को भेजने का था। किंतु तपती लू और प्रचंड गर्मी को देखकर मेरे मन ने गवाही नहीं दी कि बेचारे को पैदल भेजूँ। आखिर कुछ भी हो उसमें भी तो मेरी जैसी आत्मा है।" इसीलिए गाड़ी में बैठकर मैं स्वयं चला आया।