जो अपनी योग्यता, परिस्थिति और महत्त्वाकांक्षा के बीच संतुलन बनाए रहता है, वह सुखी रहता और सफल होता है। जो बहुत चाहता है, किंतु उसके उपयुक्त योग्यता नहीं बढ़ाता, उसे निराशा के अतिरिक्त और कुछ हाथ नहीं लगता।