बुद्ध बारह वर्ष के तप के उपरांत जब अपने गृहनगर लौटे तो सारे नगर में हर्ष की लहर फैल गई और पूरे नगरवासी उनके स्वागत के लिए दौड़ पड़े किंतु पिता शुद्धोधन बड़े कुपित थे कि मेरा बेटा और भिक्षुओं के वेश में, दर-दर मारा-मारा फिरे। मेरे राज्य में किस बात की कमी है। लोगों के बहुत समझाने पर पिता बुद्ध के स्वागत के लिए नगर की सीमा पर गए तो, किंतु भौंहें क्रोध से तनी थीं। बुद्ध के मुखमंडल पर परम शांति झलकती देखकर पिता का क्रोध ठंडा तो हुआ, किंतु शिकायत फिर भी बनी थी कि उनका बेटा होकर इस वेश में क्यों घूमता-फिरता है ? बुद्ध को समझते देर न लगी और वे पिता से बोले— “शायद आप मुझसे इसलिए रुष्ट हैं कि मैंने आपकी इच्छा के विरुद्ध यह मार्ग चुना है। किंतु स्रष्टा की यही मर्जी थी। आपने मुझे जन्म दिया, यह भी एक घटना थी। यशोधरा से विवाह किया, यह भी एक घटना थी। राहुल का जन्म तीसरी घटना थी। किंतु आगे और कितनी घटना मेरे जीवन में घटित होंगी, स्रष्टा को अभी मुझसे क्या कार्य लेना है, वह न आप समझते हैं, न मैं जानता हूँ और अब मैं वह नहीं जो बारह वर्ष पूर्व था या जो जन्म के समय था"।
कुछ मनुष्य उसी समय में ठहरे रहते हैं। कुछ आगे बढ़ जाते हैं। जो ठहरे रहते हैं, उन्हें समझदार नहीं कहा जा सकता, जो आगे बढ़ते हैं वे ही जीवन में कुछ कर जाते हैं।