एक व्यक्ति ने सुधारा समूचे अपराधी वर्ग को

January 1990

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लंदन का ‘वालवर्थ’ नामक कस्बा। आज ही एक पढ़ा-लिखा सुशिक्षित-सा लगने वाला युवक यहाँ रहने आया था। कस्बे के निवासी भी उसे आश्चर्य की निगाहों से देख रहे थे। भला यह यहाँ क्यों आया ? इस समूचे आश्चर्य और सभी के भौंचक्के होने का कारण वालवर्थ के निवासियों का पतित जीवन था। जिसके कारण समूची बस्ती इस कदर बदनाम हो चुकी थी कि भूल से भी कोई उधर आने का साहस न करता।

इन निवासियों में थोड़े से मजदूर थे— बाकी चोरी, जेबकटी से अपनी रोजी चलाते। बात-बात में किसी की हत्या कर देना सामान्य बात थी। नोच-खसोटकर जो भी कमाते, वह शराबघर में चला जाता। बचा-खुचा बरबाद करने के लिए वेश्याघर-जुआघर भरपूर थे। इनके बीच में किसी सभ्य-सुशिक्षित का प्रवेश आश्चर्यजनक तो था ही।

धीरे-धीरे लोग उसके पास आने लगे। पास आते हँसते—  मजाक उड़ाते। उनके हँसने के साथ वह भी खूब हँसता। अब उसने बच्चों पर ध्यान केंद्रित किया। स्वास्थ्य और शिक्षा यही मुख्य मुद्दे थे। सारा दिन इसी में खपता। माताओं को स्वास्थ्यविषयक जानकारी देने के साथ बच्चों को सुसंस्कारित करने का क्रम चलाता रहता।

धीरे-धीरे लोगों का विश्वास उसके प्रति बढ़ता गया। बस्ती निवासियों को यह देखकर बड़ी प्रसन्नता हुई। कोई तो है जो उनके बच्चों के कल्याण का ध्यान रखता है। इस बढ़ते विश्वास का परिणाम यह रहा कि उस शिक्षित नवयुवक ने उन सभी से अनुरोध किया कि सभी रविवासरीय कक्षा में अवश्य पधारें। कृतज्ञता से अभिभूत हो प्रायः सभी आने लगे। सौम्य-सरल ढंग से उन्हें जीवनबोध बताया जाता। चरित्रनिष्ठा की गरिमा समझाई जाती। इसके साथ यह भी बताया गया कि कम-से-कम रविवार के दिन आप लोग कोई गलत काम न करें। अपनत्व और सेवा के वशीभूत हो सभी ने स्वीकार कर लिया।

एक दिन बस्ती के सभी निवासियों ने आपस में तय किया कि इस युवक को सेवा करते इतने दिन हो गए, आखिर हमें भी तो कुछ करना चाहिए। पूछने पर युवक ने कहा—" क्यों न हम लोग पिकनिक मनाएँ"। तीन-चार दिन के इस कार्यक्रम में यह तय किया गया कि कोई भी बदमाशी चोरी नहीं करेगा। उन लोगों की जिंदगी का यह पहला  अवसर था, जब चार दिन बिना किसी अपराध के कटे।

इसके बाद तो परिवर्तन शुरू हो गया। अपराध की जगह लोगों ने श्रम को अपनाया। कुछ सेना में भर्ती हुए, कुछ मिलों में। शनैः-शनैः समूची बस्ती का कायाकल्प हो गया। एक ही व्यक्ति के प्रभावकारी व्यक्तित्व ने प्रमाणित कर दिया कि व्यक्तित्व अन्यों को गढ़ सकते हैं। इस प्रभावकारी व्यक्तित्व के स्वामी थे सी. एफ. एण्ड्रयूज, जिन्होंने कैंब्रीज विश्वविद्यालय से अपनी शिक्षा समाप्त करने के बाद समाज सेवा को अपना कार्यक्षेत्र चुना।

‘वालवर्थ’ निवासियों के बदले जीवन को लोग हतप्रभ हो देखते और स्वीकारते कि एक ही किंतु सेवापरायण— आदर्शों का धनी अनेकों का जीवन बदलने में सक्षम है। श्री एण्ड्र्यूज कहा करते थे —"बुराइयाँ हैं, आदमी और समाज बुरा है— इसका रोना रोने की जगह यदि उनको परिवर्तित करने, नए ढंग से गढ़ने—नया रूप देने के प्रयत्न में जुट पड़ा जाए तो एक बस्ती ही क्यों, पूरे समाज का कायाकल्प संभव है।" दीनबंधु एण्ड्रयूज के विचार आज भी सामयिक हैं और तदनुरूप आचरण के लिए हम सभी को पुकारते हैं।


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