कहीं मनुष्य यंत्र मानव न बन जाय!

November 1989

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सुप्रसिद्ध चीनी दार्शनिक चाँग होचाँग एक बार देश-भ्रमण के लिए निकले। प्रजा की भलाई के लिए सामाजिक अध्ययन और उपयुक्त वातावरण की शोध इस भ्रमण का मुख्य उद्देश्य था।

घूमते-घूमते चाँग ताईवान पहुँचे। एक युवक माली कुँए स जल निकाल रहा था। बाल्टी बालटी पानी निकालने और फिर से ढोकर हर पौधे तक पहुँचाने में उसे बहुत अधिक श्रम करना पड़ रहा था। माली की देह पसीने से तर हो रही थी। तो काफी काम बाकी पड़ा था। काफी देर तक सोचते रहे। कोई ऐसा उपाय नहीं है क्या? जिससे माली का परिश्रम कम किया जा सके।

विचार न करें तो सैकड़ों वर्षों की कड़ी गली अनुपयोगी चीजें सगे सम्बन्धी की तरह चिपक रहतीं और कष्ट देती हैं। पर विचार की एक छोटी सी चिनगारी की उन्नतियों के राजमहल खड़े कर सकती है। चाँग ने सोचा यदि लकड़ियों की एक घिरी बनाकर उसमें रस्सी लपेट कर खड़े-खड़े ही खींचने का प्रबन्ध हो जाए और यहीं से प्रत्येक वृक्ष तक के लिए नाली खोद ली जाए तो माली का यथेष्ट श्रम बच सकता है। इतने ही श्रम में वहां पहले से अधिक काम कर सकता है।

माली ने इस योजना का लाभ समझा और उसे मान लिया। ढेकलीनुमा व्यवस्था हो गई माली वहीं खड़ा-खड़ा पानी निकाल कर पौधे सींचने लगा।

समय तो बचा पर माली ने देखा कि उसके चलने फिरने लचकने-झुकने के कई व्यायाम अब नहीं रहे। इसलिए शरीर के कुछ अंग शिथिल रहने लगे है तो भी उसे इस बात का सन्तोष था कि तब से कुछ अधिक काम हो जाने से शरीर का हर अंग कुछ न कुछ तो क्रियाशील हो ही जाता है। इसलिए स्वास्थ्य में गिरावट की कोई विशेष चिन्ता नहीं हुई है।

चाँग आगे बढ़ गया। बहुत देर तक घूम चुकने के बाद वह फिर उसी रास्ते से वापस लौटे तो उनके मस्तिष्क में एक और बात याद आई कि यदि कुयें में भाप से चलने वाली मशीन डाल दी जाए तो परिश्रम भी बिलकुल कम हो जाय और पौधों को पानी भी खूब मिलने लगे। माली ने वह प्रस्ताव भी स्वीकार कर लिया। भाप का इंजन लग गया, माली को चैन हो गया।

काफी दिन बीतने के बाद एक दिन चाँग की इच्छा उस बाग को देखने की हुई। उसने सोचा था बगीचा अब लहलहा रहा होगा। पर वहाँ जाकर देखा तो स्तब्ध रह गया। पूछने पर पता चला माली बीमार रहता है इसलिए समय बेसमय पानी मिल पाता है। इसी से पेड़ पौधे मुरझा रहे हैं।

चाँग माली को देखने उसके घर गए। सचमुच उसे बीमार पाया। उसके हाथ सूख गए थे, टाँगे कमजोर हो गई थी, पेट दो रोटी से ज्यादा पचा नहीं सकता था। माली का मुँह पीला पड़ गया था।

चाँग ने हँस कर पूछा-”कहो भाई! अभी भी अधिक परिश्रम करना पड़ता है क्या? तो कोई और तरकीब सोचें।” पास खड़ी मालिन ने हाथ जोड़कर कहा-”श्रीमान् जी तरकीब लड़ाने की अपेक्षा आप इन्हें ऐसी सीख दीजिए कि पहले की तरह फिर से अपने हाथ से ही काम करने लगें। मशीन का आराम ही इनकी बीमारी का कारण है।” चाँग अपने एकाँगी चिन्तन पर बहुत ही पछताये। उन्होंने सोचा-”मनुष्य यांत्रिक और बिना परिश्रम के जीवन के आकर्षण में न पड़ता तो वह न तो अस्वस्थ होता न तो रोगी।” उनने माली से अपनी स्त्री की ही राय मान लेने की सीख दी वहाँ से वापस चलें आए। माली अपनी पूर्व जीवन पद्धति में आकर पुनः स्वस्थ हो गया।


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