एक और अंगुलिमाल

November 1989

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

सन् 1863 की सर्दीली सुबह। पेरिस का एक कुख्यात अपराधी अपने स्वजन सम्बन्धियों से अन्तिम बार मिल रहा था। पेरिस के न्यायालय ने उसे निष्कासन का दण्ड दिया था और तीन दिन के भीतर अपनी तैयारियाँ पूर्ण कर पेरिस छोड़ने का फैसला सुनाया था। उस अपराधी का नाम था फ्रैच्कुइस डी विलीन। फ्रेन्कुइस की गणना फ्रांस के कुख्यात अपराधियों में की जाती थी। ऐसा नहीं था कि वह पैदायशी अपराधी था। बचपन में तो उसकी गणना-मेधावी छात्रों में की जाती थी। छात्र और अध्यापक सभी उसकी प्रतिभा का लोहा मानते थे। किन्तु दुर्योग से वह अपने विद्यार्थी जीवन में ही ऐसी कुसंगति में फँस गया कि उसकी रुचि अपराध की ओर खिंच गई। जिस प्रतिभा ने उसे विद्यार्थी जीवन में विश्वविद्यालय का गौरव बनाया था, वही जब भटक गई तो फ्रैन्कुइस बन गया, अपराधियों का गुरु।

सुशिक्षित फ्रैन्कुइस ने अपने अपराधी जीवन का आरम्भ जेब कटी से किया फिर वह चोर बना। वह पेरिस की गन्दी बस्ती में रात भर वैश्यालयों में पड़ा रहता। जब उसे पैसों की जरूरत पड़ती वह किसी को भी धर दबोचता और अपने आतंक से डराकर उसके पास जो कुछ भी होता छीन लेता। जेब कटी और चोरी के बाद डाके डालने की आदतें भी पड़ी। उसे डाके डालने में इतना आनन्द आता कि वह अपने शिकार के साथ बुरी तरह मारपीट भी करता।

फ्रैन्कुइस के इन क्रिया-कृत्यों से पुलिस ने उसका नाम काली सूची के शिखर पर दर्ज कर दिया पुलिस उसे गिरफ्तार करने के लिए बार-बार फंदा कसती पर फ्रैन्कुइस हर बार उस फन्दे को तोड़ देता। लोगों को हमेशा एक दहशत सी बनी रहती। लेकिन भला कोई कब तक बच सकता है। एक बार वह पुलिस की गिरफ्त में ऐसा आया कि उसकी सारी चालें बेकार हो गई। न्यायालय ने उसे प्राणदण्ड दिया। उसके सारे हौंसले पस्त हो गए, मनोबल चकनाचूर हो गया।

उन दिनों पेरिस निवासियों पर पादरी ग्यूलैमी का अच्छा प्रभाव था। ग्यूलैमी के व्यक्तित्व और आचरण द्वारा लोगों को नैतिकता और मानवता के मार्ग पर आरूढ़ होने की प्रेरणा मिलती थी। वे सोचने लगे कि यदि उसे एक बार सुधरने का मौका दिया जाय तो शायद वह अपना जीवन बदल दे। इसलिए उन्होंने फ्रांस सरकार से उसके लिए क्षमा याचना की। सरकार ने उसे क्षमा तो नहीं किया परन्तु उसका प्राणदण्ड निर्वासन में जरूर बदल गया।

ग्यूलैमी उससे मिले। अपने प्रेम से लबालब भरे हृदय को उस पर उड़ेला। आत्मीयता भरे स्वरों में उसे बोध कराया कि मूलतः तुम अपराधी नहीं हो। तुम्हारे अब तक के कर्म कुछ भूलें भर है। तुम्हारे चाहने पर उनका पूरी तरह परिमार्जन सम्भव है। यह परिमार्जन होते हुए तुम्हारा व्यक्तित्व निखर आएगा। तुम्हारे भीतर का देवता जग जाएगा। यह देवता और कोई नहीं तुम स्वयं हो।

ग्लूमैली के प्रेम ने उसके अंतस् के मर्म स्थल को छू लिया। भीतर सोए देवता ने अंगड़ाई ली इतिहास ने अपनी पुनरावृत्ति की। एक नया अंगुलिमाल भिक्षु बना। फ्रैन्कुइस के ढाँचे में बदलने लगा। अपनी कविताओं में पीड़ा, पश्चाताप अपने अतीत से घृणा और पिछले जीवन के कारण स्वयं के लिए तिरस्कार की भावनाओं को इतने सशक्त ढंग से व्यक्त किया कि फ्रैन्कुइस डी विलान फ्रांस का श्रेष्ठ कवि और उच्चकोटि का साहित्यकार बन गया। मनुष्य में परिवर्तन असम्भव नहीं है। सिर्फ आवश्यकता उससे अन्तर की दैवी भाव सम्वेदनाएँ छूने और उभारने की है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles