अनन्त संभावनाओं का स्त्रोत- मानवी मन

November 1989

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आकृति में छोटा किन्तु प्रकृति में विराट मानवी मस्तिष्क का विश्लेषण करने पर पैसा ही आश्चर्यजनक प्रतीत होता है जैसा कि ब्रह्मांड की रहस्यमयी क्षमताओं पर दृष्टिपात करते समय यह विराट का वैभव। इसकी संरचना बड़ी अलौकिक एवं अद्भुत है। मस्तिष्क ब्रह्माण्डीय चेतना का-परमात्मा का प्रतीक है। शरीर पदार्थ विज्ञान है तो मस्तिष्क ब्रह्म विज्ञान। स्वभावतः गरिमा चेतन सत्ता की ही मानी जायगी क्योंकि शरीर की प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष गतिविधियों पर उसका नियंत्रण है। इतना ही नहीं मस्तिष्क जिस व्यापक चेतना केन्द्र के साथ आदान-प्रदान स्थापित करने में समर्थ है उसे देखते हुए यही कहा जा सकता है कि परमात्मा और आत्मा के बीच विद्यमान एकात्मा की तरह मानवी मस्तिष्क भी विश्व चेतना (कास्मिक माइन्ड) के साथ अविच्छिन्न रूप से जुड़ा रहने के कारण उतना ही सशक्त समझा जाता है।

मस्तिष्कीय क्षमताओं में स्मरण शक्ति का बहुत बड़ा योगदान है। जो आज पढ़ता-सुनता है और कल भूल जाता है, उसे अशिक्षित एवं अनगढ़ स्थिति में ही रहना पड़ेगा। स्मरण-शक्ति की आवश्यकता एवं उपयोगिता को समझते हुए शिकागो यूनीवर्सिटी में कार्यरत मनोरोग विशेषज्ञ डा. रोबोर्ट रोज ने एक ऐसे मस्तिष्क में सूचनाओं के भण्डारण की जटिल प्रक्रिया और खोई स्मृतियों को पुनः प्राप्त कर सकने की क्षमता का अध्ययन .... से किया जा सकता है। इन्हें न्यूरोट्रांसमीटरों के नाम से जाना जाता है। डा. राज का कहना है कि इस रसायन की आकृति और प्रकृति अन्यान्यों की तुलना में भिन्न स्तर की होती है।

न्यूरोट्रांसमीटरों की तुलना रेडियो तरंगों से की गई है लेकिन इन्हें क्रियाशील बनाने की क्षमता न्यूरोमोडूलेटर हारमोन में पायी जाती है जो डायल की भाँति लयबद्ध तरीके से ट्यूनिंग की जिम्मेदारी निभाता है। इसी को दूसरे शब्दों में एड्रीनोकोर्टीकोट्रापिक हारमोन अर्थात् एसीटीएच नाम से जाना जाता है। जिसका उद्गम स्त्रोत पीयूष ग्रन्थि है। श्रमशीलता के परिणाम स्वरूप यह रक्त प्रवाह में घुलकर ऐड्रीनल हारमोन के निर्माण में पिल पड़ता है जिससे स्मरण शक्ति में अप्रत्याशित अभिवृद्धि हो उठती है।

मनःसंस्थान का गहनता से पर्यवेक्षण करने के उपरान्त पता चला है कि तथ्यों को भविष्य में याद रखने की आवश्यकता समझी तथा उनमें गहरी अभिरुचि उत्पन्न की जानी चाहिए। स्मरण और विस्मरण की लाभ हानियाँ पर भी समान रूप से विचार किया जाय तो अनेकानेक तथ्यों की परत मस्तिष्क में जमायी जा सकती है।

आये दिन घटित होने वाली अद्भुत अलौकिक और आश्चर्यजनक घटनाएँ वैज्ञानिकों, चिकित्सकों और अन्वेषकों के लिए चुनौती और गुत्थी बनकर आ खड़ी होती है तो वैज्ञानिक नियमानुसार उन्हें नहीं समझा जा सकता। वर्ष 1978 में इंग्लैंड के मेडीकल रॉयल कालेज में एक व्यक्ति की मृत्यु के प्रसंग को लेकर संगोष्ठी आयोजित की गई। मृतक का परीक्षण किया गया तो उसके हृदय की धड़कने पुनः धड़कने लगीं। तब से यह सिद्ध हो चुका है कि हृदय की गति, श्वसन प्रक्रिया तथा शरीर की सम्पूर्ण गतिविधियों का नियंत्रण एवं नियमन मस्तिष्क से ही होता है और मस्तिष्कीय कोशिकाओं की मृत्यु के उपरान्त ही व्यक्ति को मृत घोषित किया जा सकता है। असीम क्षमताओं से भरा पूरा मानवी मस्तिष्क इतना सशक्त और समर्थ है कि इसका पूरी तरह उपयोग करने पर अनेकानेक तरह की महत्वपूर्ण सफलताएँ हस्तगत की जा सकती है। मनः संस्थान को जाग्रत एवं सक्षम बनाने के लिए निरन्तर प्रयत्नशील रहना ही व्यक्ति की विवेकशीलता है।


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