छोटी छोटी बातों की जीवन में महत्ता

November 1989

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बहुधा हम अपने जीवन में बहुत सी बातों की इसलिए उपेक्षा कर देते हैं कि उन्हें लगता है वे बहुत छोटी बातें है। इनसे भला व्यक्ति, परिवार और समाज पर क्या असर पड़ता है? उदाहरण के लिए किसी केला खाकर सड़क पर छिलका फैंक दिया किसी ने टोक दिया तो उत्तर मिलेगा इससे कौन सा प्रलय हो जायेगा। इधर-उधर थूकते फिरने, लाइन तोड़कर पहले टिकट लेने के लिए आगे बढ़ने, यातायात के नियमों को तोड़कर सड़क पर घूमने जैसी बातों को लोग महत्व नहीं देते क्योंकि उनकी दृष्टि में ये बहुत साधारण और छोटी-छोटी बातें है।

लेकिन इन छोटी-छोटी बातों को छोटी होने के कारण उपेक्षित नहीं किया जाना चाहिए। एक छोटे से परमाणु की आँतरिक संरचना में हुआ जार सा परिवर्तन विध्वंसकारी परिणाम प्रस्तुत कर देता है। विष का जरा सा अंश जीवन संकट खड़ा कर देता है। एक छोटी सी ब्लेड प्राणान्त की स्थिति ला देती हे। एक छोटा से घाव नासूर बनकर शरीर को गलाने लगता है। छोटी सी खरोंच टिटनेस जैसा प्राणघाती रोग उत्पन्न कर देती है। ये तो सामान्य जीवन की बातें हुई। सामाजिक जीवन में छोटी-छोटी बातों के कितने परिणा में होते हैं-इसके अनेकों उदाहरण यत्र तत्र बिखरे पड़े हैं।

ग्यारहवीं शती में मुडेना और बोलोना राज्य में हुए युद्ध में हजारों व्यक्ति मारे गये। यह युद्ध कोई बीस वर्षों तक चला। युद्ध एक छोटी से बात के कारण छिड़ा थािक मुडेना के कुछ सैनिक बोलोना राज्य के एक सार्वजनिक कुएं से कोई बर्तन उठा कर ले गये थे।

छोटी-छोटी लापरवाहियों के बहुत बड़े दुष्परिणाम होते है। कुछ वर्षों पूर्व .... की पोस्ट नामक पत्रिका में एक लेख छपा था जिसका साराँश इस प्रकार है-नगर की एक प्रसिद्ध फर्म में विलियम डेकन-लेखा कर्मचारी ने जब एक दिन .... हिसाब किताब पूरा किया वह बड़ा परेशान हुआ। उसके हिसाब में नौ सौ डालर की कमी पड़ रही थी। वह बार-बार जोड़ता, हिसाब लगता और हिसाब था कि .... ही नहीं रहा था। संस्था के प्रबन्धक इस पर कर्मचारी की बड़ी भर्त्सना की। .... पहले ही हिसाब न मिलने के कारण बहुत ज्यादा परेशान था। मालिक की डाँट पड़ने पर और उखड़ गया। यह देखकर प्रबन्धक भी हिसाब जोड़ने लग गया। परन्तु समस्या का कोई समाधान नहीं निकला। दो आदमी जाँच के लिए लगाए गए। वे एक रकम को चक कर रहे थे। अभी वे थोड़ा ही आगे बढ़ पाए थे कि एक रकम पर आकर रुक गये। उन्होंने गलती को पकड़ लिया। एक स्थान पर एक हजार डालर होना चाहिए था जबकि वहाँ उन्नीस सौ डालर बन गए थे। ध्यान से निरीक्षण करने पर पता चला कि कैश बुक के पृष्ठों में एक मक्खी मर गई थी और एक हजार की संख्या में सैकड़ों वाले शून्य पर उसकी टाँग इस प्रकार चिपक गई थी कि वह शून्य के स्थान पर नौ बन गया था।

जनरल ग्रांट जिन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध में मित्र राष्ट्रों की ओर से लड़कर महत्वपूर्ण भूमिका निबाही, एक छोटे से अवसर का उपयोग कर ही सफल हुए। उन्होंने लिखा है-युवावस्था में मैं एक बार पड़ोस की मार्केट में अपनी माँ के लिए मक्खन लेने गया। रास्ते में मैंने सुना कि सेना के कुछ स्थान रिक्त हुए हैं। मैंने उसके लिए आवेदन कर दिया। इस तरह मेरे लिए सैनिक शिक्षण प्राप्त करने का अवसर मिल गया, जो युद्ध के समय मुझे सेना के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध कर सका। जिस अवसर ने जनरल ग्राण्ट को इतने उच्च स्तर तक पहुँचाया वह एक साधारण सी घटना के कारण ही मिला था। जनरल ग्राण्ट ने इस सम्बन्ध में लिखा है-यदि उसकी माँ उन्हें मक्खन लेने नहीं भेजती तो वे जनरल तथा प्रधान नहीं बन पाते।

जीवन में छोटी-छोटी बातों का महत्व दर्शाते हुए प्रसिद्ध विचारक बर्टेंड रसेल ने लिखा है- आदमी की परख बड़ी-बड़ी बातों से उतनी नहीं होती जितनी कि छोटी बातों से। ये ही आगे चलकर बड़ी हो जाती है। छोटा सा छेद बड़े से बड़े जहाज को डुबो देता है। छोटी सी फुँसी बड़े से बड़े पहलवान को मार सकती है। अतः छोटी बातों की उपेक्षा न कीजिए। वे बड़ी से बड़ी बातों से भी बड़ी है।

गेहूँ के एक दाने से सारे विश्व का भरण पोषण करने की बात पढ़ने सुनने में भले ही कोतुकपूर्ण लगे और अतिवश्वसनी लगे पर गणितीय आकलन से सही .... होती है। गणना की गई है कि एक दाने से एक वर्ष में पचास दाने होते है। उन पचास दानों को अगले वर्ष बोया जाए तो उससे अगले वर्ष उनके ढाई हजार दाने हो जायेंगे। फिर उन सब दानों को बोया जाए तो उससे अगले वर्ष 75 हजार दाने हो जायेंगे। यही क्रम बारह वर्ष तक चलता रहे तो तेरहवें वर्ष 21, 41, 40, 62, 50,00,00,000 (21 शंख, 41, पदम, 40, नील, 62 खरब, 50 अरब) दाने हो जाते हैं। गेहूँ के इतने दानों का भार लाखों टन होता है। जिससे सारे विश्व को खिलाया जा सकता है। कल्पना कीजिए, यह एक दाने का कमाल है इसी प्रकार एक कथा प्रचलित है कि विजय नगर के राजा कृष्णदेव राय ने अपने यहाँ एक नौकर रखा। नौकर के कहने पर तनख्वाह तय हुई एक पैसा प्रतिमाह। साथ ही साथ शर्त भी थी। वेतन प्रतिमास गुणानुपात में बढ़ाया जाए। राजा को शर्त आसान लगी। उसी क्रम से वेतन बढ़ने लगा। दूसरे माह दो पैसे, तीसरे माह 1 आना, चौथे माह 2 आने, पांचवें माह 4 आने, छठे माह आठ आने, सातवें माह एक रुपया और अन्त में 1 लाख 31 हजार 17 रुपये प्रति मास पाने वाला हो गया। तब राजा की समझ में आया कि जिस शर्त को उसने बहुत छोटी और आसान सा समझा था वह कितनी बड़ी थी।

इन कहानियों को मनोरंजन के लिए गढ़ा गया भी मान लिया जाए तो भी यह तथ्य अपने स्थान पर सही है। छोटी-छोटी और साधारण लगने वाली बातें बहुत बड़ी तथा असाधारण होती है। जिस सूर्य से पृथ्वी सहित अन्य कई ग्रहों को प्रकाश मिलता है उसका व्यास आठ लाख छियासी हजार मील है। इस पर भी यदि हम दूर के किसी नक्षत्र से जहाँ से यह एक तारे के बराबर दिखाई देता हो-टेलिस्कोप से देखें। उस टेलिस्कोप के लैन्स के आगे एक पतला सा रेशमी धागा आ जाय तो हमें सूर्य एकदम दिखाई नहीं देगा। 8 लाख 86 हजार मील व्यास वाला सूर्य एक रेशमी धागे की ओट में आ जायेगा। एक छोटी सी असावधानी कैसा विध्वंस प्रस्तुत कर देती है, इसका उदाहरण मिसीसिपी बाँध के टूटने की घटना से मिलता है। इस नदी के स्तर से लगभग 15 फीट नीचे अर्लियन्स नगर बसा हुआ है। सन् 1883 ई. उस बाँध में एक छोटी सी दरार देखी गई।

अधिकारियों ने उसे देखकर भी अनदेखा कर दिया। इतना मजबूत बाँध और दो, तीन फुट लम्बी बाल बराबर इस दरार से क्या अनर्थ हो जायेगा। इस लापरवाही के परिणाम स्वरूप चौड़ी होते-होते वह दरार इतनी बड़ी हो गई कि उससे निकली विपुल जल राशि से आर्लियेन्स नगर ही डूब गया।

अधिकारियों ने उसे देखकर भी अनदेखा कर दिया। इतना मजबूत बाँध और दो, तीन फुट लम्बी बाल बराबर इस दरार से क्या अनर्थ हो जायेगा। इस लापरवाही के परिणाम स्वरूप चौड़ी होते-होते वह दरार इतनी बड़ी हो गई कि उससे निकली विपुल जल राशि से आर्लियेन्स नगर ही डूब गया।


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