अदृश्य के गर्भ में छिपी अलौकिकताएँ

November 1989

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कभी-कभी अविज्ञात के अंतराल से ऐसे कौतुकी मायावी दृश्य प्रकट होते हैं, जिनकी कार्य कारण से कोई संगति नहीं बैठती। ऐसे घटना क्रमों की एक लम्बी श्रृंखला है। एक घटना 13 अक्टोबर 1917 की है। पुर्तगाल के कोबिड़ाइरिया नामक स्थान में तीन बच्चों ने पेड़ पर लटकते एक प्रकाश पुँज को देखा, जिसके मध्य देदीप्यमान एक देवी मुस्करा रहीं थी। लड़के डरने लगे तो उस देवी ने कहा “डरो मत मैं स्वर्ग से आई हूँ। तुम लोग इसी समय आया करो तो प्रकाश समेत मेरे दर्शन करते रह सकोगे।”

लड़कों ने बात सब जगह फैला दी। दूसरे दिन उस गाँव के आस-पास के ..... हजार की संख्या में लोग उस स्वर्ग की देवी के दर्शन करने एकत्रित हुए। देवी के दर्शन तो न हुए पर लोगों ने बादलों के बीच चाँदी जैसा चमकता हुआ एक दिव्य प्रकाश का गोला अवश्य देखा। दर्शकों में शिक्षित, अशिक्षित, आस्तिक-नास्तिक, विद्वान, वैज्ञानिक आदि सभी वर्गों के लोग सम्मिलित थे। प्रकाश के उस चमचमाते गोले को देखकर भी आश्चर्य चकित थे। यह देख वे और भी अचंभित हुए कि प्रकाश का गोला स्थिर न रहकर कई घेरे बना बनाकर कलाबाजियाँ खा रहा है। देखते-देखते वह तश्तरीनुमा बन गया और उसके कई प्रकार की आकृतियाँ बनने लगीं। बहुत समय तक उसमें इन्द्र धनुष उभरा रहा और अन्तरिक्ष के एक कोने से लेकर दूसरे कोने तक घेरे रहा।

प्रत्यक्ष दर्शियों में से प्रायः सभी के अंतःकरण में एक ही प्रेरणा उभरी कि प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति पर शान्तिपूर्ण वातावरण विनिर्मित होगा। पुर्तगाल के प्रख्यात दैनिक पत्र मार्से क्यूलों के सम्पादक ने इस घटना का आँखों देखा विवरण छापा और इसे देवी चमत्कार बताते हुए “सूर्य का नृत्य” नाम दिया था।

“हिस्ट्री आफ वन्डरफुल इवेन्ट्स” नाम पुस्तक में इस तरह की कई घटनाओं का विवरण प्रकाशित हुआ है जिन्हें देवी चमत्कार कहा जा सकता है। इसमें से एक घटना अठारहवीं शताब्दी के आरंभिक दिनों की है। तब स्पेन और फ्राँस के बीच घमासान युद्ध चल रहा था। कमाण्डर ली, जोनबाँव के नेतृत्व में स्पेन के पाँच हजार सैनिक तीन टुकड़ियों में बंटकर चल रहे थे। एकाएक लगभग ..... सैनिकों की एक टुकड़ी देखते ही कुछ सेकेंडों के भीतर गायब हो गई। सैनिकों की ढूंढ़ खोज का कार्य कई तक चलता रहा, पर कोई सुराग नहीं मिल सका।

इसी से मिलती जुलती एक ओर घटना सन् .... में प्रशिया में घटी। .... फ्राँसीसी सैनिकों का एक जत्था निकटवर्ती जर्मन चौकी पर हमला करने के लिए बढ़ रहा था। सभी सैनिक अस्त्र-शस्त्रों से लैस थे। अचालक हवा का हल्का बवण्डर आया और देखते ही देखते .... सैनिक हवा में विलुप्त हो गये। बचे हुए पाँच सैनिकों के लिए यह घटना अचम्भित कर देने वाली थी। भयभीत इन सैनिकों ने आस-पास का चप्पा-चप्पा छान मारा पर साथी सैनिकों का कहीं पता नहीं चला। सेना की दूसरी टुकड़ी को जाकर इन पाँचों ने घटना की सूचना दी। महीनों खोजबीन चलती रही, पर उन सैनिकों का, विलुप्त साथियों का कोई चिन्ह तक न मिला।

वियतनाम तब फ्रेंच इण्डोचीन के नाम से जाना जाता था। सन् .... में वहाँ की केन्द्रीय छावनी से .... सशस्त्र फ्रांसीसी सैनिकों सैगोन के लिए भेजे गये। निदिष्ट स्थान जब .... मील दूर रह गया था, तभी सारा जत्था इस प्रकार गायब हो गया मानो वहाँ था ही नहीं। मुद्दतों तक ढूंढ़ खोज चलती रही पर ऐसा एक भी सुराग न मिला जिससे उनके अदृश्य होने का कारण समझा जा सके। न तो वे किसी के द्वारा पकड़े गये, न मरे, न भागे, न कोई अस्त्र-शस्त्र या पद चिन्ह ही ऐसे छोड़े गये, जिनके सारे खोजी लोग किसी संभावना की कल्पना कर सकें।

इसी तरह सन् .... में चीन और जापान के बीच युद्ध चल रहा था। तीन हजार चीनी सैनिकों की एक टुकड़ी नानकिंत नामक स्थान पर पड़ाव डाले पड़ी थी। एक दिन प्रातः अचानक केन्द्र से उनका संचार संपर्क टूट गया। केन्द्रीय सैनिक कमाण्डर ने अविलम्ब उक्त टुकड़ी के सैनिकों की खोज आरंभ कर दी। पड़ाव के स्थान पर सैनिकों के अस्त्र-शस्त्र एवं खाद्य सामग्री तो विद्यमान थे, पर वहाँ न तो किसी प्रकार के युद्ध का चिन्ह मिला, न ही सैनिकों के अवशेष। खोजी कुत्ते उक्त स्थान पर जाकर भौंकते रहे। वे वहाँ से आगे बढ़ने का नाम नहीं लेते थे। दो फलाँग दूरी पर दो सैनिक सुरक्षा पर पर नियुक्त थे, मात्र वे ही बच सके। उत्तरी कनाडा के “अजिकृनी” गाँव की घटना उक्त घटनाओं से भी अधिक आश्चर्यजनक है। सन् .... में प्रकाशित नक्शे में उत्तरी कनाडा के चर्चिल पुलिस स्टेशन से 40 मील दूर बसा यह गाँव तब एस्किमो लोगों की आबादी से भरापूरा था। किन्तु .... के अगस्त मास में एक दिन कुछ ऐसी अनहोनी हुई कि उस पूरे गाँव के मनुष्यों, जानवरों का ही नहीं मलवे तक का अस्तित्व पूरी तरह गायब हो गया। भूमि ऐसी हो गई मानों वहाँ किसी आबादी का अस्तित्व था ही नहीं। इससे भी बढ़कर आश्चर्य की बात एक और थी कि वहाँ के कब्रिस्तान में पूर्व से गड़े एक भी मुर्दे के अवशेष नहीं रह गये। लगता था उन्हें भी उखाड़ कर ले जाया गया। उस सारे प्रान्त को छान डालने पर भी इसका कोई कारण या निशान उपलब्ध नहीं हुआ।

अदृश्य सत्ता जहाँ इस तरह के कौतुक कौतूहल कभी-कभी प्रस्तुत करती रहती है वहीं संकटकालीन परिस्थितियों में लोगों को प्रत्यक्ष या परोक्ष सहायता भी प्रदान करती है। द्वितीय महायुद्ध के समय मोन्स की लड़ाई में ब्रिटिश सेनाओं की बुरी तरह हार हो गई, मात्र 400 सैनिक बचे। वे भी बुरी तरह हौंसला पस्त हो चुके थे। दूसरी और जर्मनों की 90 हजार की संख्या वाली विशाल सेना थी जिसकी कोई समानता न थी। तभी ऐसे आड़े समय में ब्रिटिश सेनाधिकारी ने परमसत्ता से सहायता की याचना की और अपने सभी सैनिकों सहित तन्मय भाव से उसके स्मरण में व्यस्त हो गया। अचानक एक बिजली सी कौंधी और पाँच सौ सैनिकों को एक शुभ्र आभा प्रकट होती दिखाई दी। सबने देखा कि कुछ ही क्षणों में सभी दस हजार जर्मन सैनिक रणभूमि में मरे पड़े थे।

स्मरण रखने योग्य तथ्य यह है कि भगवान के लिए कुछ भी कठिन नहीं हैं। वह कलियुग को सतयुग में बदलता है, त्रेता में धर्म राज्य की स्थापना करता है। रावण, वृत्रासुर, कंस जैसों के मद को चूर्ण-विचूर्ण करता है। सुदामा, विभीषण, सुग्रीव जैसे विपन्नों को सुसम्पन्न बनाता है। हारे हुए देवताओं को महाप्रलय के गर्त में डूबो देता है और सर्वव्यापी जल में से नई सृष्टि रचकर खड़ी कर देता है। वह मानवोचित विचारों को, मानवी वर्चस्व की गरिमा व पुनर्जीवित करने के लिए अन्तःकरणों में भा उथल-पुथल उत्पन्न कर दे तो क्या असम्भव है? जिसके कौशल से निखिल ब्रह्माण्ड ग्रह, तारक अधर में टंगे और घुड़दौड़ ल.... हुए ऐसा क्रम चला रहे हैं, जिसे देखते .... आश्चर्यचकित रह जाना पड़ता है। इक्कीसवीं सदी की उज्ज्वल संभावनाओं को साकार .... दिखाने और सड़ी गली व्यवस्था को गर्त झोंक देने तथा उसके अनुग्रह से नवयुग आगमन सम्पन्न होने को असंभव नहीं मानना चाहिए।


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