जीवन-गीत (kavita)

November 1989

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यदि चलें नहीं, तो आगे बढ़ना कैसे हो? आगे बढ़ने का चाव, चरण की गति में है।

पथ में आये व्यवधान, प्रमाण-प्रणाति में हैं॥ पहुँच से प्रथम, ठहराव, पहुँचना कैसे हो?

लक्ष्य की प्राप्ति, सन्तुष्टि, थकान नहीं देती, साँझ से भेंटती किरण, विहान नहीं देती,

तप-तेज न हो, सूर्य का निकलना कैसे हो? पानी-सा पा तारलय, अगर वह चले नहीं।

पथ के चट्टानी विघ्न, दरेरे दले नहीं। बूँद का महासागर से मिलना कैसे हो?

है स्वागतव्य, संघर्ष, कि जो गति देता है। है अवरोधक-औदार्य, प्रगति-रति देता है।

झंझा से सहमें ज्योति, तो जलना कैसे हो? फल-फूल, तरु, ढला, बीच की आकृति में,

देना-गलना ही रहा, सृजन की परिणति में, बीच का न गलना हो, तो फलना कैसे हो?

यदि चलें नहीं तो आगे, बढ़ना कैसे हो?

-लाखनसिंह भदौरिया

जीवन-गीत


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