विलक्षण, अद्भुत प्रेम का रसायन शास्त्र

November 1989

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न्यूयार्क स्टेट साइकेट्रि इन्स्टीट्यूट के संचालक डाँ. माइकेल आर.लैबोबिट ने “दि केमिस्ट्री आफ लव” पुस्तक में बताया है कि भावनाओं में जड़ पदार्थों को भी चेतन कर देने की शक्ति है और प्रेम समस्त भावनाओं का मूल स्त्रोत है इसलिए यह कहना अत्युक्ति नहीं कि स्नेह-सद्भावनाएँ न केवल चेतन तत्व को ही प्रभावित करती हैं, वरन् जड़वत समझे जाने वाले शरीर की रासायनिक प्रक्रिया पर भी समान रूप से असर डालती हैं।

घृणा और ईर्ष्या के भाव उत्पन्न होने पर शरीर के अंग-अवयवों में एक विशिष्ट प्रकार की प्रक्रिया होने से व्यक्ति में निष्क्रियता, नीरसता और निर्जीवता जैसी स्थिति का आभास होने लगता है। इस अवस्था में व्यक्ति के शरीर से ‘ऐम्फेटेमीन’ नामक एक विशेष प्रकार का रसायन शरीर में स्रवित हो उठता है। यह “एक्फेटेमीन” कहाँ से आता है? इसका उद्गम स्त्रोत किस स्थान पर हो सकता है? एनाटॉमी के आधार पर इसका कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दिया जा सकता। शरीर की सूक्ष्म रचना के पहलुओं पर ही विचार करना होगा।

शरीर विज्ञानी तो बस इतना भर जानते हैं कि मानवी मस्तिष्क में फिनाइल ईथाइल अमील यानी पी.ई.ए. नाम क एक तरल पदार्थ बड़ी ही न्यूनतम मात्रा में मस्तिष्क के अंतर्गत समाविष्ट रहता है, जिसकी रासायनिक संरचना “ब्रेन एम्फेटेमीन” से मिलती जुलती प्रतीत होती है। मनोविकारों से ग्रसित व्यक्ति के मूत्र में इस पी.ई.ए. एवं इम्फेटेमीन की उपस्थिति स्पष्टतः देखी जा सकती है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ के मनःशास्त्री डाँ. रिचार्ड विट के मतानुसार हिस्ब्टीरौइड डिस्फारिया’ एक ऐसा मनोरोग है, जो व्यक्ति में ईर्ष्या-द्वेष और मनोमालिन्य के फलस्वरूप ही उत्पन्न होता है और रोगी मूत्र परीक्षण में पी.ई.ए की मात्रा भी स्फुट दृष्टिगत होती है। चूहों तथा बन्दरों पर किये गये परीक्षणों से यह तथ्य सामने आया है कि उनमें स्नेह सद्भाव पारस्परिक प्रेम का वातावरण विनिर्मित करने पर ही उक्त प्रकार के रसायनों को दूर कर सकना संभव है। यद्यपि वैज्ञानिक बुद्धि ने व्यक्ति में प्रेम-भाव जागृति के लिए “मोनोमाइन ऑक्सीजन इन हीबीटर्स,” जैसे कृत्रिम उपाय उपचारों की भी ढूंढ़ खोज में काफी उत्सुकता दिखाई है, फिर भी उस स्तर की स्थायी सफलता पाने में अभी असफलता ही हाथ लगी है।

“न्यूयार्क स्टेट साइकिएट्रिक इंस्टीट्यूट आफ डिप्रेशन इवेल्युएशन सर्विस” के विशेषज्ञ तथा सुप्रसिद्ध मनःशास्त्री डोनाल्ड एफ.क्लेन ने ‘हिस्टीरौइड डिस्फोरिया’ नामक रोग की उत्पत्ति का मूल कारण व्यक्ति के मनोभावों में विद्यमान ईर्ष्या और घृणा रूपी राक्षस को ही बताया है और कहा है कि यही शरीर के स्वाभाविक विकास क्रम में गतिरोध उत्पन्न करते और विभिन्न प्रकार की आधि-व्याधियों को न्यौत बुलाते हैं। लगभग ऐसा ही मन्तव्य “माइण्ड एण्ड मैटर” के लेखक तथा मूर्धन्य मनःचिकित्सक जे.ए. मिलीगन का है। उन्होंने यह सिद्ध कर दिखाया कि दाम्पत्य जीवन में स्नेह-सौहार्द्र का अभाव ही “हिस्टेरायड डिस्फोरिया” रोग का मूल कारण है।

चिकित्सक द्वय के अनुसार इस रोग में कदाचित ही कोई औषधि प्रभावी सिद्ध होती हैं उनका कहना है कि इस रोग का उपचार औषधि में नहीं वरन् हर रोगी की भावनात्मक स्थिति में सन्निहित है। उसके अंतर्मन से द्वेष-दुर्भावों को निकाल कर उसकी जगह सद्भावों का समावेश कर इस व्याधि का सफल उपचार किया जा सकना संभव है। आज बहुसंख्य व्यक्ति इसी व्याधि से पीड़ित बेचैन उद्विग्न हैं। उनका उपचार दुखों को बाँटकर प्यार द्वारा किया जा सकता है।


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