जिजीविषा की अजेय चमत्कारी सामर्थ्य

November 1989

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यह किसने किया? कम से कम यह मनुष्य के द्वारा तो संभव नहीं। सामान्य आदमी ऐसे आश्चर्यजनक वाक्य कहते सुने जाते है। किंतु मनोबल के धनी इन आश्चर्यचकित कहने वाले कामों को करते देखे जा सकते हैं। ये उद्गार पश्चिम जर्मनी के एक युक कुर्त एंजील पर पूरी तरह सही उतरते हैं, जिसका सारा जीवन ही ऐसे कारनामों से भरा पड़ा है।

एंजील का बचपन से शौक था दुस्साहस भरे काम करना। दुस्साहस ऐसा नहीं कि किसी को पीड़ा पहुँचाए या किसी को डरा धमका कर अपना वर्चस्व बनाए। बल्कि ऐसा दुस्साहस जिसकी सामान्य स्थिति में मनुष्य कल्पना भी न कर सके। ऐसे रोमाँचक कारनामों में उसे लड़ते वायुयानों से पैराशूट बाँधकर छलाँग लगाना सर्वाधिक प्रिय था और एक बार पैराट्रपिंग पुरस्कार भी जीत चुका था। तेज गति से उड़ते विमानों पर से छलाँग लगा कर उसने कई बार लोगों को रोमाँचित किया।

घटना उस समय की है जब कुर्त एंजील ने पहली बार रोमाँचक प्रदर्शन किया था। इससे पहले वह अभ्यास ही करता रहा था उसकी अभ्यास पारंगतता तथा प्रत्युत्पन्न मति को देखकर अधिकारियों ने एंजील का छाताधारी दल के नेतृत्व का अवसर प्रदान किया।

जिस वायुयान में वह उसके दल के अन्य सदस्य सवार थे, उस वायुयान ने पहले ओवहैजन के इर्द-गिर्द वाले क्षेत्र में उड़ा भरी। फिर एकदम ऊँचाई पकड़ना आरम्भ किया करीब 1500 फीट की ऊँचाई पर विमान पहुँच गया। इतनी ऊँचाई पहुँच विमान के पिछले हिस्से से कितने ही पैराशूटधारी कूद पड़े।

वह कूद तो गया पर पैराशूट नहीं खुल सका। उसमें कहीं कोई गड़बड़ी आ गई थी और बजाए खुलने के पैराशूट रस्सियों सहित उसके घटना तथा बदन के इर्द-गिर्द लिफ्ट गया था। कुर्त ने लुढ़कते हुए उन रस्सियों को काट डाला। प्राणों पर प्रत्यक्ष संकट था।

लेकिन जैसे-जैसे वह रस्सियाँ काटता जा रहा था, वैसे-वैसे रस्सियाँ उसके शरीर पर लिपटती जा रही है। वह नब्बे किलोमीटर प्रति घण्टे की गति से जमीन पर गिरता जा रहा था, पर इतने पर भी उसने होशोहवास नहीं खोए थे। पैराशूट से बुरी तरह लिपटे हुए वह जमीन पर गिरा। इस बुरी तरह गिरा कि वह अपने ही भार से पीठ के बल लगभग दो फूट की गहराई में जमीन में धँस गया था। फिर भी उसके होशोहवास कायम थे। एक तीखी जलन शरीर में महसूस होती जा रही थी, और उसे बेसुध किए दे रही थी जैसे शरीर का सारा खून निचुड़कर पीठ में इकट्ठा होता जा रहा है। उसने हिलना चाहा पर हिल न सका। आँखों में बचपन स अब तक की कितनी ही स्मृतियाँ तैर गई। कुर्त के मन में संकल्प उठा। अभी मुझे अपने देश के लिए परिवार के लिए जिन्दा रहना है। मैं जीवित रहूँगा और ठीक होने परा इससे भी अधिक ऊँचाई से छलाँग लगाऊँगा।

इन संकल्पों के साथ ही उस पर न जाने कब बेहोशी आ गई। होश आया तो वह अस्पताल में था। कहीं दूर से आती डाक्टर की आवाज उसके कानों में पड़ी “एक फेफड़ा फट गया है पसलियाँ टूट गई हैं, रीढ़ की हड्डी बुरी तरह क्षति ग्रस्त हो गई है, दाहिना गुर्दा पिस चुका है। अब इसे किसी भी तरह बचाया नहीं जा सकता।

लेकिन आश्चर्य कि इस घटना के नौ सप्ताह बाद ही कुर्त एंजील उस अस्पताल से स्वस्थ होकर निकला। उसका जवाब था ‘मुझे पूर्ण विश्वास था कि मैं बचूँगा। भला मैं अपना काम पूरा किए बिना मर कैसे सकता हूँ, स्वस्थ होने के बाद उसने छलाँग लगाई और सिद्ध कर दिया कि मनोबल से मौत भी डरती है।


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