स्वप्न एक वैज्ञानिक सत्य!

November 1989

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स्वप्न जीवन की एक महत्वपूर्ण अवस्था है जिसके आधार पर परलोक, पुनर्जन्म, वासनाओं की प्रबलता, आत्मा का काल और देश से परे होना आदि अनेक वैज्ञानिक मान्यताओं की सत्यता की जाँच हो सकती है। मन आत्मा की सूक्ष्म ज्ञानेन्द्रिय है। वह आत्मा को उसके भूत और भविष्य की अनेक देखी अनदेखी बातों को भी प्रकट करता है। मन जितना ही पवित्र, परिष्कृत और प्रखर होगा उतने ही स्वप्न में सही और सार्थक दृश्य उभरेंगे। ऐसे दृश्य मनुष्य का कल्याण भी करते हैं और भविष्य की अथवा प्रियजनों की खबरें भी देते रहते हैं।

स्वप्न देखते समय मस्तिष्क का ई.ई.जी लेने से जो तथ्य सामने आयें हैं उसके अनुसार उस समय मस्तिष्कीय अल्फा तरंगें क्रियाशील रहती हैं जो जाग्रत एवं अर्ध जाग्रत दशा में भी चलती है। गहरी निद्राओं में नहीं। इससे सिद्ध होता है कि स्वप्न दश जाग्रति की सर्वथा विरोधी दशा नहीं है। जबकि स्वप्न अचेतन की सक्रियता की अवधि का नाम है। सामान्य जीवन में अधिकांश व्यक्ति जो काम करते हैं, मनोवैज्ञानिक दृष्टि से अर्ध चेतनावस्था में सम्पन्न किये जाते हैं। अनुमानतः घन्टेभर में कोई व्यक्ति एक मिनट के लिए पूर्ण एकाग्रता की स्थिति में रहता है। सोने के स्स्स्स् घन्टे यदि कम कर दिये जायें तो दिनरात में स्स्स्स् घन्टों में स्स्स्स् मिनट ही सही मायनों में मनुष्य चेतन और पूर्ण जागरूक रह पाता है अन्यथा अथ चेतन जैसी स्थिति में ढर्रे के काम करता रहता है। इसीलिए दिनभर की वे ही घटनाएँ दीर्घकाल तक स्मृति पटल पर रहती हैं जिनमें वह पूर्ण सजग व एकाग्र स्थिति में रहा होता है।

वैज्ञानिकों ने सपनों को दो भागों में विभक्त किया है, सक्रिय और निष्क्रिय। पहली श्रेणी में स्वप्नदर्शी कुछ कर सकने की स्थिति में होता है और दूसरी में एक मूकदर्शक की तरह की स्थिति बन जाती है। स्वप्न देखने में व्यक्ति के शरीर की ऊर्जा तो खर्च होती है पर लाभ इसकी तुलना में कहीं अधिक देखने को मिलना है। मानसिक तनाव से मुक्ति तथा प्रातःकाल उठने पर नई स्फूर्ति की अनुभूति सपनों की स्थिति के अनुरूप की जा सकती है। यूनानी दार्शनिक अरस्तु ने तो उसी मनुष्य को उत्तम कोटि का माना है, जिसके सपनों के क्रियाकलाप दूसरे लोगों की जाग्रतावस्था से पूरी तरह संगति खाते हैं।

जन सामान्य की तो यही धारणा है कि स्वप्न क्षण भंगुर और न समझ में आने वाली मनोलीला भर हैं। लेकिन अपने चेतन जीवन को अधिकाधिक उपयोगी बनाने और उसे रचनात्मक एवं विधेयात्मक दिशा में प्रवृत्त होने की शक्ति सामर्थ्य का विकास कर सकना स्वप्नों के माध्यम से अत्याधिक सरल एवं सुगम है। जीवन का लगभग आधा भाग निद्रावस्था अचेतनावस्था तथा दिवास्वप्नावस्था से गुजरते ही व्यतीत होता है। सपने उसी अचेतनावस्था के प्रतीत उद्गार समझे जाते हैं। आधुनिक स्वप्न शास्त्री हैवलाँक एलिस ने “वर्ल्ड आफ ड्रीम्स” में बताया है कि यदि सपनों में जरा भी बेचैनी महसूस होने लगे तो उनसे डरने-घबराने की कोई आवश्यकता नहीं, उन्हें अपने स्वभाव का द्योतक नहीं मान बैठ जाना चाहिए। वातावरण की सूक्ष्म हलचलों के फलस्वरूप भी कभी-कभी ऐसा देखने को मिलता है। स्वप्नों की अपनी भाषा है जिसे उसका निष्णात ही पढ़ समझ सकने में सफल हो सकता है। इनकी व्याख्या बिलकुल अनोखी अपने ढँग की ही होती है। रूस और चैकोस्लोवाकिया में अब इनके वैज्ञानिक परीक्षण भी आरम्भ हुए हैं।

स्वप्न विद्या अध्यात्म विज्ञान का ही एक महत्वपूर्ण अंग है, यदि उसका विकास किया जा सके तो मनुष्य की अतीन्द्रिय चेतना का विकास और विस्तार करके परोक्ष जगत के रहस्यों को आसानी से जाना जा सकता है।


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