विवेकानन्द ने कहा था-न मुझे भक्ति की परवाह है, न मुक्ति की। मैं ऐसा वासन्ती जीवन जीना चाहता हूँ जिससे हर ओर प्रसन्नता और खुशहाली का वातावरण बने।