दैवी चेतना का प्रभावी प्रचण्ड प्रवाह

November 1989

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मनुष्य मूलतः देव पुत्र है। उसे विकसित करने एवं सभ्यता की पराकाष्ठा पर पहुँचाने में देव शक्तियों का प्रमुख हाथ रहा है। प्रत्यक्ष में देखने पर मानवी पुरुषार्थ भले ही दीख पड़े, पर परोक्ष में महान कार्यों, संकटकालीन विषम परिस्थितियों में ब्राह्मी चेतना की उदार अनुदान सहायता ही कार्यरत रहती है। प्रत्यक्षवाद को प्रमुख मानने वाले वैज्ञानिकों एवं बुद्धिवादियों ने भी अब ऐसी कितनी ही घटनाओं का संकलन और विश्लेषण ब्रह्माण्ड की कोई एक नियामक सत्ता अवश्य है। उसकी सूक्ष्म सन्देशवाहक शक्ति धाराएँ समय-समय पर शरीरधारी मनुष्यों से संपर्क साधती, उन्हें पूर्वाभास करातीं, चेतावनी देती और संकट के समय मनोबल बढ़ाने वाला उत्कृष्ट चिन्तन उभारती है।

दार्शनिक सुकरात

के संबंध में विख्यात है कि उनके साथ एक दिव्य आत्मा रहती थी जिसे वे “डेमन” कहते थे। वह उन्हें हर महत्वपूर्ण विषय पर परामर्श दिया करती थी, जिन्हें वे अक्षरशः स्वीकारते थे। उनने स्वयं तो अपनी जीवनी नहीं लिख, पर प्लेटों, जेनोफेन प्लुटार्क जैसे प्रसिद्ध दार्शनिकों के ग्रन्थों से सुकरात की जीवनगाथा मिलते हैं। ऐसे कितने ही घटनाक्रमों का उनने उल्लेख किया है जिसमें वह देवी शक्ति उन्हें खतरों से अवगत कराती और पग-पग पर सहायता देती रहती थी।

जब विद्रोह फैलाने के अपराध में अदालत से सुकरात को मृत्युदण्ड मिला और उनको जेल से छुड़ा ले जाने के लिए पर्याप्त साधन जुटा लिए गये थे, तब “डेमन” ने उनसे कहा-”यह मृत्यु तुम्हारे लिए श्रेयस्कर है। इससे इनकार मत करो।” सुकरात को अपील नहीं करने दी और वे विष का प्याला खुशी-खुशी पी गये।

दैवी शक्तियाँ अनेक बार मनुष्यों को चेतावनी, सत्परामर्श देती भविष्यवाणी बताती तथा उन्हें अपने अदृश्य रूप का प्रत्यक्ष दर्शन भी कराती है। उनके बताये संकेतों पर चलकर कितने ही धर्म प्रेमी लाभ भी उठाते है। ऐसी ही एक घटना फ्रांस के अपर ऐल्सेक प्रान्त के ट्रोइस ऐपिस नगर की है। जहाँ एक धार्मिक व्यक्ति की हत्या कर दी गई थी। 3 मई 1491 को डैटर स्कोर नामक एक लुहार वहाँ से गुजरा तो उसे आकाश से उतरती हुई एक दिव्य शक्ति के दर्शन हुए। नारी स्वरूप उस शक्ति के एक हाथ में श्वेत हिमवर्तिका तथा दूसरे में हरीतिमा की प्रतीक अनाज की तीन बालियाँ थी। उसका कहना था कि यदि अपराधों की गति ऐसी ही रही तो लोगों को प्राकृतिक प्रकोपों का शिकार बनना पड़ेगा। दुर्भिक्ष से लेकर अनेकानेक बीमारियाँ फैलेंगी। ट्रौइस ऐपिस में ऐसा ही हुआ और लोगों को भारी मुसीबतों का सामना करना पड़ा। तब से उस स्थल को धर्म स्थल के रूप में माना जाने लगा।

ग्रीक-पर्शियन युद्ध के कारणों का गंभीरतापूर्वक अध्ययन करने वाले सुप्रसिद्ध इतिहासकारों का कहना है कि एथेना प्रोनाइया के मन्दिर में एक बार देवी आवाज गूँजी, जिसमें अनाचार के विरुद्ध मुहिम शुरू करने का स्पष्ट आदेश था। सन् 1491 में बवेरिया के हैरोल्ड बैक गाँव में भी एक ऐसी ही आयोजन हो रहा था, जिसमें काफी संख्या में लोग उपस्थित थे। कार्यक्रम के मध्य में अचानक एक श्वेत वस्त्रधारी प्रतिमा लोगों के सक्षम प्रकट हुई। उसने परावाणी में जो कुछ कहा, उसकी प्रेरणा लोगों ने स्पष्ट अनुभव की। इसके बाद मूर्ति अन्तर्ध्यान हो गई। धर्म प्राण लोगों ने अनुभव किया कि मानो मूर्ति कह रही हो कि शासनतंत्र पर धर्मतंत्र का अंकुश होना चाहिए। तभी राज्य में सुव्यवस्था और शान्ति बनी रह सकती है। ज्ञातव्य है, तब वहाँ चारों ओर अव्यवस्था और अराजकता का बोलबाला था। अशान्ति और कलह के दमघोट वातावरण से सभी संत्रस्त थे और शान्ति की तलाश में मृगतृष्णा की तरह भटक रहे थे।

दैवी चेतना की सूक्ष्म प्रवाह प्रेरणा का जब कभी अवतरण होता है तो वह इतनी प्रचण्ड होती है कि मनुष्य का विशाल समुदाय भी उसके प्रभाव में आये बिना नहीं रहता। पुर्तगाल के एक गाँव में सन् 1417 में एक ऐसी घटना घटी। 13 मई से लेकर 13 अक्टूबर 1417 तक हर महीने की 13 तारीख को “डिवाइन मदर आफ रोजरी” के रूप में दिव्य संदेश के साथ अवतरित हुए स्थानीय लोगों ने देखा। चर्चा फैलने पर 13 अक्टूबर को इस अभूतपूर्व दृश्य को देखने के लिए हजारों व्यक्ति एकत्र हो गये। उपस्थित लोगों का कहना था कि इस बीच वहाँ का सूक्ष्म वातावरण कुछ ऐसा बना, जो लोगों की धर्म-भावना को झकझोर रहा था। लोगों ने अपने भीतर उत्कृष्ट विचारणाएँ और विलक्षण परिवर्तन अनुभव किये। “फातिमा उद्यान” के रूप में यह घटना अभी भी अविस्मरणीय बनी हुई है।

इजराइल तब गुलामी की जंजीरों में जकड़ा था। स्वाधीनता प्राप्ति के लिए अथक प्रयास करने के बावजूद भी जब वहाँ के निवासियों को मुक्ति के कोई आसार नजर नहीं आये, तो उन्होंने धार्मिक कृत्यों का सहारा लिया और धर्मानुष्ठानों की एक लम्बी श्रृंखला चलाई। इसी मध्य उन्हें “माउण्ट सिनाई”से एक दिन एक दिव्य संदेश मिला, जिसमें कहा गया कि-”तुम्हारी खुशियाँ वापस लौटेगी और तुम जल्दी स्वतंत्र हो जाओगे।” इस ईश्वरी सूचना के मिलते ही लोगों की उद्विग्नता शान्त हो गई और सभी ने सोलोमन के नेतृत्व में इजराइल ने स्वतंत्रता प्राप्त की, यह एक इतिहास प्रसिद्ध घटना है।

चौदहवीं शताब्दी में इटली में राजनीतिक कमजोरियों के कारण अराजकता का विष पूरे देश में फैलता चला गया। पास-पड़ौस क राष्ट्र भी इटली वासियों की इस कमजोरी का लाभ उठाने की कोशिश करने लगे। इन्हीं परिस्थितियों में सन् 1364 में इटली के एक छोटे से गाँव “साइना” में कैथलीन नाम एक 14 वर्षीय किशोरी के कर्ण कुहरों में दिव्य वाणी सुनाई दी। उसमें देवी चेतना का यही संदेश था कि-”तुम लोगों में धार्मिक चेतना फैलाओ तभी देश इस दल-दल से निकल सकता है।” पहले तो कैथलीन ने इसे अपने कानों का भ्रम माना, पर जब वह घटना उसके दैनन्दिन जीवन का अंग बन गई तो उसने उन्हें अपने जीवन का आदर्श और आधार बना लिया। तदनुरूप कार्यक्रम आरंभ कर लोगों का चिन्तन-तंत्र और जीवनक्रम बदलने का अभियान आरंभ किया, जिसमें उसे काफी सहायता मिली तथा देश की स्थिति में उत्तरोत्तर सुधार होता चला गया।

स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में विवेकानन्द और अरविन्द को ब्राह्मी चेतना से दिव्य एवं सूक्ष्म संकेत नियमित रूप से मिलते रहते थे। दैवी शक्तियाँ इनसे सतत् संपर्क बनाये हुए थीं और भावी कार्यक्रमों की रूपरेखा तथा उनसे सम्बन्धित निर्देश दिया करती थी। इन्हीं संकेतों के आधार पर वे अपनी योजनाएँ बनाते और क्रियान्वित करते थे। अलीपुर जेल में मिले दैवी चेतना के संकेतों के आधार पर ही अरविन्द स्वाधीनता-संग्राम के सक्रिय जीवन से संन्यास लेकर पाण्डिचेरी की एकान्त साधना में निरत हुए।

परिवर्तन चाहे व्यष्टिगत को अथवा समष्टिगत सदैव सत्प्रयोजनों के निमित्त होते हैं। दैवीसत्ताओं की इनमें प्रमुख भूमिका होती है। वे जन मानस को झकझोरती, चिन्तन की उत्कृष्टता को उभारती और वह सब करने को बाध्य कर देती हैं जो मानवी गरिमा को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए नियामक सत्ता को अभीष्ट है।


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