लोक सेवा के निमित्त संघबद्ध प्रयास

November 1989

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एकाकी प्रयास कुछ ने कुछ परिणाम प्रस्तुत करते ही हैं, पर सरलता एवं अधिक सफलता मिल-जुल कर काम करने में ही रहती है। सहकारिता की, संघ शक्ति के महात्म्य का जिन्हें ज्ञान है, वे जानते हैं कि मानवी प्रगति का समूचा ढाँचा सहकारी प्रयासों के आधार पर ही ठीक बना है। परिवार गठन और सामाजिकता के अधिग्रहण ने ही उसे उस स्तर तक ऊँचा उठने, आगे बढ़ने में समर्थ बनाया है, जिसमें कि वह आज है। अकेलेपन का मानस बनाकर यदि वह अपने क्रियाकलापों को सीमित बनाये रहा होता, जो नर-वानर या वन मानुष की स्थिति से कदाचित ही कुछ ऊँचा उठ सकने में समर्थ हुआ होता।

मधु-मक्खियों ने अपने वर्ग में अधिक श्रेय पाया है कि उनमें मिल-जुल कर काम करने की प्रवृत्ति पायी जाती है। तितलियों में यह प्रवृत्ति न होने से वे अपनी जिन्दगी जीती हैं और अपनी मौत मरती रहती है। झुण्ड बनाकर रहने वाले हाथी अपने समुदाय को सुरक्षित रखते और निश्चिन्ततापूर्वक अपने क्षेत्र में विचरते हैं। कुत्ते इसलिए बदनाम हैं कि अपनी बिरादरी का कोई अन्य मुहल्ले में या पहुँचने पर धरती-आसमान सिर पर उठा लेते हैं। बन्दरों को इसलिए नमन किया जाता है कि वे साथ चलते साथ रहते और आपत्ति के समय आक्रमणकारी पर मिलजुल कर हल्ला बोल देते हैं।

संगठित समुदायों ने सदा प्रगति की है और दुर्गति के भाजन वे बने हैं, जिन्हें विघटन की नीति अपना कर स्वेच्छाचार बरतने में रुचि रही है। अपने देश की लम्बी समय की गुलामी मात्र एक तथ्य का परिचय देती है कि हम परस्पर-जाति-कबीलों के नामपर, जागीरों-ठिकानों के नाम पर एक दूसरे की उपेक्षा करते रहे। इसी कारण मुट्ठी भर आक्रमणकारियों का सामना न कर सके।

कहते है कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता। ढाई चावल की खिचड़ी नहीं पक सकती। डेढ़ ईंट से मस्जिद खड़ी नहीं हो सकती। कमजोर तिनकों से मिल कर मोटा मजबूत रस्सा बन जाता है जिससे हाथी को भी बाँधा जा सके। धागे मिलकर कपड़े बनते हैं। छोटी-छोटी ईंट मिलकर भव्य भवन खड़े होते है। अकेले सैनिक का महत्व ही कितना है? पर जब वह सेना का अंग बन जाता है, तो एक बड़ी शक्ति का उदय होता है। सन्त भी अखाड़े आश्रम बना कर रहते है और बड़े काम सम्पन्न करते है। प्रतिभा परिष्कार के इच्छुकों को आत्मशोधन का प्रयत्न तो एकाकी स्तर पर करना चाहिए, पर वहाँ सामूहिकता की नीति ही अपनानी चाहिए। राम ने रीछ वानरों को, बुद्ध ने परिव्राजकों को एक सूत्र में बाँधा और उनकी संयुक्त शक्ति से महान लक्ष्य को प्राप्त किया था। यही इन दिनों भी किया जाना है। युग परिवर्तन का प्रकाश पर्व अब अति निकट है। इक्कीसवीं सदी उज्ज्वल भविष्य के साथ जुड़ी हुई है। इस युगसन्धि के समय में तैयारियाँ भी बहुत करनी हैं और प्रस्तुत तथा निकटवर्ती कठिनाइयों के साथ टक्कर भी जोरदार लेनी है। इसके लिए आवश्यक है कि जिनके भीतर महानता के बीजाँकुर मौजूद हों, वे एक सूत्र में बँध कर योजनाबद्ध रूप से काम करें। यह एक उच्चस्तरीय तप है तथा आपत्ति धर्म भी। इसको निजी कार्यक्रम मानकर यदि नव सृजन की साधना में जुटा जाय, तो प्रतिभा परिष्कार का लाभ मिलना सुनिश्चित है। वह किसी के वरदान-अनुदान मात्र से प्राप्त नहीं हो सकता है। कोई पूजा पाठ भी इस प्रयोजन की पूर्ति नहीं कर सकता। इसके लिए सामयिक साधना यही हो सकती है कि नव सृजन के लिए विनिर्मित कार्यक्रम को अपनी योग्यता स्थिति के अनुरूप चुना और उनमें पूरी तत्परता के साथ जुट जाया जाय।

*समाप्त*


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