एक क्षण भी व्यर्थ नहीं खोना (kahani)

November 1989

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जिज्ञासु कबीर के पास पहुँचकर बोला-”ईश्वर पाने का कौन सा मार्ग है?” कबीर चुपचाप बैठे रहे। थोड़ी देर सोचने के बाद खिड़की में से झाँककर देखा और बोले- “सूरज ढलने ही वाला है। साँझ होने के करीब है।” जिज्ञासु उठा कबीर को प्रणाम किया और चला गया। पास बैठे व्यक्ति को यह देखकर बड़ी हैरानी हुई कि उस व्यक्ति ने पूछा क्या और कबीर ने उत्तर किया दिया? असंगत उत्तर सुनकर वह कबीर से पूछ बैठा कि “आपने उस व्यक्ति को इस तरह बहकाकर क्यों टाल दिया।” कबीर बोले “उत्तर सही सटीक था। वह व्यक्ति सन्तुष्ट होकर लौटा है।” तुम्हें विश्वास न हो तो जाकर पूछ लो। वह व्यक्ति जिज्ञासु के पास पहुंचकर बोला- “क्या तुम कबीर के उत्तर से संतुष्ट हो चुके हो।” उसने कहा “हाँ। उन्होंने ठीक ही कहा था।” मेरे जीवन की संध्या आ चुकी है और अब ईश्वर मिलने में कितनी देर है।” मुझे अपनी भूल पर पश्चाताप है कि ईश्वर प्राप्त करने के लिए जो कार्य मुझे चाहिए थे वे नहीं किये और व्यर्थ ही मार्ग पूछने पहुँच गया। बस तब से उन्हीं प्रयत्नों और प्रयासों में जुट गया हूँ। अब मुझे एक क्षण भी व्यर्थ नहीं खोना हैं।


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