चित की चंचलता (kahani)

November 1989

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चार मित्र मिलकर एक गुरु के पास ध्यान सीखने पहुँचे। गुरु ने कहा-”ध्यान तो दूर की बात है। अभी साँझ हो गई है, सूरज ढल चुका है, तुम एक घड़ी यहाँ चुपचाप शान्त होकर बैठे जाओ। मैं तुमसे बाद में बात करूंगा।” गुरु आंखें बन्द करके अपने ध्यान में लीन हो गया। वे चारों बड़ी मुसीबत में फँस गये। कुछ करने को कहा होता तो भी ठीक था। चुप बैठे रहना तो बड़ा कठिन लग रहा था। उनमें से एक का धैर्य टूटा तो खुसफुसाया। “रात पड़ गई अभी तक दीपक नहीं जला।” दूसरे ने कहा-”क्या करता है? मौन के लिए कहा है।” तीसरे ने कहा-”बड़े नासमझ हो मौन तोड़ दिया।” चौथा बोला-”मुझे छोड़कर तुम में से कोई भी मौन नहीं है” एक क्षण भी चुप रहना बहुत मुश्किल बात है। मन की भटकन यदि दूर नहीं होती, चित की चंचलता यदि नहीं हटती तब तक ध्यान लगना बहुत कठिन बात है।


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