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Akhand Jyoti
Year 1987
Version 2
मुक्तात्मा का अमर...
मुक्तात्मा का अमर गान (Kavita)
November 1987
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Page Titles
अनन्तपारा दुष्पूरा तृष्णादोष-शता-वहा
परमात्मा की प्राप्ति सच्चे प्रेम से
भगवान के दर्शन कैसे हों?
राजकुमार भद्रबाहु (कहानी)
मरण: एक उच्च कोटि का दार्शनिक
पुण्य के साथ-साथ उसकी परिणति समझना भी आवश्यक है(कहानी)
चित्त की वृत्तियों को रोकिए
Quotation
ग्राह रूपी जीवात्मा की बंधनमुक्ति
धर्म धारणा का पंचम सोपान-शुचिता
आँख और कान का महत्व (Kahani)
जो सोचते हैं कर क्यों नहीं पाते?
श्रद्धा और गरिमा (Kahani)
वक्रतुण्डाय नमनोमः
विचारणा का उच्चस्तरीय प्रवाह
Quotation
पूर्वाग्रहों से मुक्त हो चला, आज का विज्ञान
मेहतर अंगरक्षक (Kahani)
व्यक्तित्व परिष्कार हेतु गहराई तक प्रवेश करना होगा
भगवान की माया का प्रत्यक्ष दर्शन (Kahani)
विकास संवाद का आधार सहयोग-सहकार
लोभी का लालच (Kahani)
सौंदर्य की परख
सिद्धि पुरुषों की साधना स्थली देवात्मा हिमालय
गिरगिट की जीत (Kahani)
बड़प्पन या कौतूहल?
जो दृश्यमान है वह एक छलावा है।
Quotation
पुण्यफल का आधार
Quotation
समस्त साधनाओं की एक धुरी ध्यानयोग
महात्मा इब्राहिम (Kahani)
विक्षुब्ध मनः स्थिति में भटकती प्रेतात्मा
आत्म अनुभव ज्ञान की पूछे कोई बात
Quotation
मनुष्य हतप्रभ है, इन अबूझ पहेलियों से
मनुष्य भी बूँदों के समान मोती बन गया होता (Kahani)
सरलता और सभ्यता की प्रतिमूर्ति एस्किमो
ब्रेन वाशिंग मनुष्य की स्वतंत्र चेतना का अपहरण
हम क्षीण व खोखले क्यों होते जा रहे हैं?
जीव जन्तुओं की भाषा-भाव भंगिमा
क्या वास्तव में मिस्र के पिरामिड अभिशप्त हैं?
अनागत की झाँकी दिखाने वाले सार्थक सोद्देश्य स्वप्न,
बृहत्तर भारत के गौरवमय अतीत के सम्बन्ध में नई खोजें
Quotation
पागल या प्रतिभावान
गायत्री साधना की सिद्धि
नये परिवर्तन नये निर्धारण
अपनों से अपनी बात - अगले वर्ष मिशन तीन गुना विस्तृत हो
कर्तव्य परायणों की विद्या ही सार्थक होती है (Kahani)
मुक्तात्मा का अमर गान (Kavita)
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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