कर्तव्य परायणों की विद्या ही सार्थक होती है (Kahani)

November 1987

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महर्षि धौम्य के गुरुकुल में पाठ्यक्रम और सदाशयता का अनुशासन समान रूप से छात्रों को सिखाया जाता था। बीच-बीच में परीक्षा का क्रम भी चलता रहता।

एक दिन मूसलाधार वर्षा हुई। आश्रम के खेत में मेंड़ टूट गई थी। पानी बहा जा रहा था। नमी न रहने पर खेता में उपज ही क्या होती?

गुरु ने खेत का पानी रोकने के लिए एक शिष्य आरुणी को भेजा। उसने अपनी बुद्धि और मेहनत से सब कुछ किया पर पानी रुका नहीं।

आश्रम का हित और गुरु आदेश का महत्व आरुणी समझते थे और उपाय समझ में न आया तो वे उस स्थान पर स्वयं लेट गये जहाँ से पानी बह रहा था।

बहुत देर हो गई तो महर्षि विद्यार्थी की तलाश करने स्वयं निकले। देखा तो आरुणी मेंड़ का पानी रोकने के लिए स्वयं लेटा हुआ था।

महर्षि ने स्वयं पानी बन्द किया आरुणी को उठा कर छाती से लगा लिया बोले कर्तव्य परायणों की विद्या ही सार्थक होती है। सच्चा लाभ उन्हीं को मिलता है।


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