ब्रेन वाशिंग मनुष्य की स्वतंत्र चेतना का अपहरण

November 1987

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मानवी मस्तिष्क असीम शक्तियों का भण्डागार है। उसमें अन्तर्निहित ऐसे विलक्षण शक्ति केन्द्र हैं जिन्हें यदि जागृत किया या कुरेदा जा सके तो मनुष्य अनेकानेक प्रतिभाओं विभूतियों का स्वामी बन सकता है। मस्तिष्कीय चेतना की गर्जन परतों में ही नवीनतम एवं पुरातन विचारों तथा संस्कारों की अमिट छाप भी अंकित होती है, जिन्हें प्रयत्नपूर्वक मोड़ा मरोड़ा या निष्कासित किया जा सकता है और उनके स्थान पर उच्चस्तरीय विचारों, संस्कारों की स्थापना की जा सकती है। सम्मोहन एवं ब्रेन वाशिंग जैसे अनेक वैज्ञानिक प्रयोगों से इस दिशा में बहुत कुछ सफलता भी मिली है।

कैंडर्स अस्पताल (यू.के) में चार वर्षीय बालिका के कान का ऑपरेशन होना था। उसमें शल्य चिकित्सकों को कम से कम पाँच घण्टे लगने थे। इतने लम्बे समय तक दवाओं की बेहोशी छोटी बालिका के लिए पीछे घातक सिद्ध हो सकती थी। अतः सम्मोहन के आधार पर ऑपरेशन करने का निश्चय किया गया। सम्मोहन द्वारा गहरी निद्रा में जाने के पश्चात् उसके कान का ऑपरेशन किया और वह पूर्णतया सफल रहा। इस सफलता से प्रभावित होकर अनेक चिकित्सकों ने इस विज्ञान का आश्रय लेना आरम्भ कर दिया। सुप्रसिद्ध चिकित्सक डा. हाँर्थमैन ने इस उपचार प्रक्रिया से न केवल रोगी अच्छे किये हैं वरन् व्यसनों और बुरी आदतों की कुटेवों से भी लोगों को मुक्ति दिलाई है। नशेबाज, जो अपने को बुरी लत को छोड़ने में असमर्थ लाचार बताते थे, सम्मोहन द्वारा व्यसन से छुटकारा पा सके। बिस्तर में पेशाब कर देने वाले किशोरों को भी इस उपचार से लाभ मिला है।

सम्मोहन के प्रभाव से विचार परिवर्तन के कारण रोगी अर्धमूर्छित भर रहता है, पर उसे कष्ट का अनुभव बिल्कुल नहीं होता। डा. हार्थमैन ने एनेस्थेशिया की आवश्यक मात्रा का आधा भाग देकर ओर आधा सम्मोहन का उपयोग करके भी रोगी का उपचार करने में सफलता पाई है। अमेरिका में इन दिनों अनेकों मूर्धन्य शल्य चिकित्सक इस प्रणाली का प्रयोग कर रहे हैं और सम्मोहन विज्ञान के आधार पर रोगियों की चिकित्सा कर रहे हैं। महिलाओं की प्रसव पीड़ा कम करने में तो इन प्रयोगों में शत प्रतिशत सफलता मिली है। दर्द नाशक इंजेक्शन लगाने की अपेक्षा सम्मोहन द्वारा कष्ट मुक्त स्थिति का लाभ देना उचित और हितकर समझा जाने लगा है। प्रसूताओं को भी यह उपचार अधिक उपयुक्त लगा है।

फ्राँस के प्रख्यात चिकित्सक एवं परामनोविज्ञानी डा. यूजेन औस्टे का कहना है कि इस प्रक्रिया में कमजोर मनः स्थिति वाले व्यक्ति सशक्त मस्तिष्कीय क्षमता सम्पन्न लोगों के प्रभाव में आकर दब्बू प्रकृति के बन जाते हैं तथा उनके विचारों के अनुरूप कार्य करने लगते हैं। यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें प्रभावित व्यक्ति या समूह को आदर्शवादिता एवं प्रगतिशीलता की ओर भी ले जाया जा सकता है और निम्नगामिता या विनाश की ओर भी धकेला जा सकता है। कम्युनिस्ट और उसके प्रभाव क्षेत्र वाले देशों का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए उन्होंने कहा है कि इन देशों में सामान्य नागरिकों की मानसिक स्थिति ऐसी है है, जिसे सम्मोहनग्रस्त कहा जाय तो कुछ भी अत्युक्ति न होगी। इससे पूर्व द्वितीय महायुद्ध के पूर्व ऐसी ही स्थिति जर्मनी, इटली आदि में तत्कालीन अधिनायकवादी शासन तन्त्र ने उत्पन्न की थी। नाजीवाद का पक्षधर लोकमानस बनाने में हिटलर, मुसोलिनी आदि ने अपने देश के समूचे बौद्धिक तन्त्र को जुटा दिया था।

इलेक्ट्रानिक ब्रेन के निर्माण की प्रक्रिया में ज्ञात तथ्यों द्वारा वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि मनुष्य का अचेतन मन एक सशक्त कम्प्यूटर की तरह कार्य करता है और जिस तरह एक कम्प्यूटर की गई फीडिंग के अनुसार ही क्रियाशील होता है, उसी तरह अवचेतन भी अपना आहार विचारों तथा संकल्पों से प्राप्त करता है। इस तरह अवचेतन की दिशा मनुष्य की इच्छाओं से ही प्रभावित होती है। प्रयास द्वारा उस पूर्ण नियन्त्रण पाया जा सकता है। और इच्छित दिशा में प्रगति की सकती है।

मस्तिष्कीय क्षमता को ही व्यक्तित्व का विकास समझने वाले वैज्ञानिकों ने इन दिनों इस संदर्भ में कई दृष्टियों में विचार किया और अनेकों उपाय ढूँढ़ निकाले हैं। इस दिशा में उनने कई अनुसंधान प्रयोग भी किये हैं। उनका कहना है कि परिवार एवं समाज के वातावरण का मनुष्य के चिन्तन एवं स्वभाव पर असर पड़ता है। इसलिए शिक्षा तथा परम्परा के क्षेत्र में कुछ ऐसा समावेश होना चाहिए जिसके प्रभाव से आज का मनुष्य अपेक्षाकृत अधिक बुद्धि, साहसी और सद्गुणी हो सके।

इसके अतिरिक्त वैज्ञानिकों का विशेष ध्यान इस बात पर भी गया है कि ब्रेन वाशिंग के कोई कारगर उपाय ढूँढ़ निकाले जायँ, जिससे दूसरों को अपनी मान्यता के अनुरूप मोड़ा मरोड़ा जा सके। इस दिशा में कम्युनिस्ट देश सबसे आगे हैं। उन्होंने अपने विरोधियों का सफाया करके सिरदर्द से छुटकारा पाने के उपायों में अत्यधिक उत्साह दिखाया है। वहाँ ऐसे प्रयोग भी हुए हैं कि प्रतिपक्षी मान्यता वालों पर ऐसे मनोवैज्ञानिक दबाव डाले जायँ कि वे अपनी पूर्व मान्यता को छोड़कर नये निर्देशों को हृदयंगम करने के लिए स्वेच्छापूर्वक सहमत हो जायँ। इस प्रयास में समझाने बुझाने अभीष्ट वातावरण में रहने, भय प्रताड़ना से आतंकित करने लालच दिखाने जैसे उपायों के सहारे असहमत को सहमत बनाने का प्रयत्न किया जाता है। यही ब्रेन वाशिंग की प्रक्रिया जाता है। यही ब्रेन वाशिंग की प्रक्रिया है जो उन देशों में बड़े उत्साह से चली और एक सीमा तक सफल भी हुई है।

इस संदर्भ में मस्तिष्क के उस केन्द्र की खोज बीन का जा रही है। जहाँ स्मृतियाँ दबी हुई प्रसुप्त पड़ी रहती हैं। कनाडा के प्रख्यात मनोवैज्ञानिक डा. डब्ल्यू . जी. पेनफील्ड ने भी ऐसे इलेक्ट्रोड खोज निकाले, जिनका सम्बन्ध विशिष्ट मस्तिष्कीय कोशिकाओं से करने पर अतीत की घटित घटनाएँ, विवाद, संवाद, चर्चा परिचर्चा ऐसे उभर आती थीं, जिनसे प्रतीत होता था कि वे अभी तत्काल ही सम्पन्न हो रही हैं।

वैज्ञानिकों के अनुसार रसायनों में प्रभाव से भी मस्तिष्क को उत्तेजित, दब्बू भयभीत या अति सामर्थ्यवान बनाया जा सकता है। इन रसायनों में सिरोटोनिन ना एडीनेलिन, एण्डाँर्फिन एवं डोपामिन प्रमुख है। जैव रासायनिक प्रक्रियाओं द्वारा ये मस्तिष्कीय क्षमता को प्रभावित करते हैं। पिछले दिनों कैलीफोर्निया के प्रसिद्ध वैज्ञानिक डा. स्नाइडर ने एनकेफेलिन नामक रस स्रावों की मस्तिष्क में उपस्थिति बताई है। इन्हें कृत्रिम विधियों औषधि, सम्मोहन, बायो फीडबैक, इलेक्ट्रोड उत्तेजन से प्रभावित करने व्यक्ति को मानसिक दृष्टि से सामर्थ्यवान प्रतिभावान बनाया जा सकता है।

भावनाएँ मानवी मस्तिष्क को अनेक प्रकार से प्रभावित करती हैं। स्नायु विज्ञान सम्बन्धी खोजों के आधार पर वैज्ञानिकों ने यह निष्कर्ष निकाला है कि इनके कारण मस्तिष्क में ऐसे रसायन उत्पन्न होते हैं, जो विष जैसा प्रभाव छोड़ते हैं और जीवन रस भी प्रदान करते हैं। मस्तिष्क विज्ञानियों का कहना है कि स्नायु तंत्र का संचालन केवल मस्तिष्क में उत्पन्न होने वाली विद्युत धारा से ही नहीं होता है वरन् उनके संचालन में रासायनिक तत्व भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस आधार पर अब यह प्रयास किये जा रहे हैं कि भावनाओं और रसायनों को मस्तिष्क के अमुक भाग में पहुँचा कर व्यक्ति को दर्द से छुटकारा दिलाया जा सके, मनोरोगों की चिकित्सा की जा सके और उसकी बौद्धिक क्षमताओं को प्रखर बनाया जा सके। ऐसी सम्भावनाओं भी व्यक्त की जा रही है। कि इन रसायनों के प्रयोग द्वारा मनुष्य की आदतें बदलने, नशे की लत छुड़ाने तथा उसका व्यवहार तक बदल डालने के प्रयोग किये जा सकते हैं।

यह प्रयत्न उसी दिशा में उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं जो मनुष्य को प्रगतिशील और आदर्शवादी बनाने के लिए किये जायँ। अन्यथा निकृष्ट प्रवृत्तियों के ढाँचे में ढले हुए व्यक्ति हिटलर की तरह संसार का अहित ही करेंगे और स्वतंत्र चेतना गंवाकर अपने सूत्र संचालकों के इशारे पर कठपुतली की तरह नाचने पर शेष समुदाय को मजबूर करने लगेंगे। यदि ऐसा समय आया तो वह मानवी स्वतंत्र चेतना की दृष्टि से सबसे बुरा समय होगा।


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