राजकुमार भद्रबाहु को सौंदर्य से बहुत प्रेम था। वह सुन्दर से सुन्दर वस्तुओं से अपना महल सजाता और जो सुन्दर होते उन्हें ही साथ रखता।
अचानक उसकी अति सुन्दरी पत्नी का देहावसान हो गया। शमशान में चिता पर उसका शव रखा गया। अन्तिम दर्शन करते हुए राजकुमार ने दुःखी मन से देखा, रानी का चेहरा ओर शरीर बुरी तरह कुरूप हो गया था।
सौंदर्य में अचानक इतना परिवर्तन देखकर भद्रबाहु का दुःख दूना हो गया। वे इस आकस्मिकता का भेद पूछने तथागत के पास पहुँचे।
उस दिन प्रवचन इसी विषय पर चल रहा था-आत्मा ही सुन्दर है। दिव्य दृष्टि में ही सुन्दरता है। इनके रहने तक एक वस्तु और व्यक्ति सुन्दर लगता है। प्रकाश बुझने पर अँधेरे के अतिरिक्त और रहता ही क्या है?
राजकुमार ने तथ्य और सत्य को समझा लौटे तो सभी सुन्दर वस्तुएँ विसर्जित कर दीं ऐसी दृष्टि विकसित की जो कुरूप में भी सौंदर्य देख सके।