कौशल निवासी गाधि नामक ब्राह्मण ने लम्बे समय तक तप करके विष्णु भगवान को प्रसन्न किया। उनने वर माँगने को कहा। ब्राह्मण ने कहा आपकी माया का प्रत्यक्ष दर्शन करने का मन है। भगवान तथास्तु कहकर अदृश्य हो गये।
गाधि रात्रि को गहरी नींद सोया और लम्बा सपना देखने लगा। उसने देख वह एक चाण्डाल परिवार में जन्मा ओर बढ़कर प्रौढ़ हो गया। कीर देश का राजा मरा तो प्रथा के अनुसार किसी को भी अपनी पीरु पर बिठा लेने के लिए प्रशिक्षित हाथी छोड़ा गया।
नया राजा ऐसा ही व्यक्ति बनता था। हाथी ने उस चाण्डाल युवक को पीठ पर बिठा लिया। राज्याभिषेक हुआ तो उसे राजा बनाया गया। उसे जाति छिपानी पड़ी अन्यथा वह सुयोग न मिलता।
राज्य भोगते वर्षों बीत गये। सुन्दर रानी विवाही गई और उसके सात बच्चे हो गये। वैभव की कोई कमी न थी। एक दिन चाण्डालों की बारात निकली राजा भी कौतूहलवश देखने लगा। बारात वालों ने उसे पहचान लिया। खोये को पाने की खुशी में वे सभी उससे लिपट गये और वापस चलने को सभी को यहाँ बुलाने का आग्रह करने लगे। छोड़ कर जाने को वह सारा समुदाय तैयार न था।
राजा चाण्डाल वंश का है, यह सुनकर राजा दरबार में हाहाकार मच गया। जो ब्राह्मण उसके यहाँ भोजन करते रहते थे उनने अपने को धर्म भ्रष्ट माना और चिता बनाकर कूद पड़े। राजा ने प्रायश्चित स्वरूप उसी चिता में कूदकर प्राण दे लिये। रानियों और राजकुमारों ने यह दृश्य भान मन से देखा वे स्तब्ध थे। चिता की भस्म समेट कर वे गंगा में प्रवाहित करने ले गये। पानी बहुत ठंडा था सो राजा की मृतात्मा में कँपकँपी छूटी। थरथराने पर उसकी नींद खुल गई।
गाधि ब्राह्मण ने स्वप्न में प्रत्यक्ष दर्शन कर लिया। आशा और निराशा के झूले में झुलाती और हँसाती रुलाती रहने वाली उस मोहिनी को उसने बारम्बार नमस्कार किया और अपनी कुटिया पर आकर विरक्त मन से नियत ब्रह्म कर्म करने लगे।