अमेरिका के उत्तर पूर्व में ध्रुव प्रदेश से सटा हुआ ग्रीनलैण्ड का विशाल द्वीप है, जो पश्चिम में अलास्का और बेयरिंग जलडमरुमध्य के उस पर साइबेरिया के उत्तर पूर्व तक बर्फ की विशाल चार ऐ ढका है। पृथ्वी का यह क्षेत्र संसार के अन्य भागों से करीब-करीब कटा हुआ है, जिसमें सदियों से प्रकृति से लोहा ले रहे एस्किमो जाति के लोग रहते हैं। सुविधा साधन की दृष्टि से भी यह इलाका पिछड़ा है। परिस्थितियाँ प्रतिकूल हैं, फिर भी यहाँ के निवासी अपने जीवन से पूर्णतः संतुष्ट हैं- यह उनके चेहरे से झलकती निश्चिंतता एवं आत्म संतोष से विदित होता है।
उनकी हँसोड़ प्रकृति कठिन जीवन को और भी सरल बना देती है। हँसी उनके जीवन का कितना अभिन्न अंग है, यह इस बात से पता चलता है कि साल भर में हम लोग जितना नहीं हँसते उससे कई गुना ज्यादा एस्किमो महीने भर में हँस लेते हैं। यह उनकी प्रवृत्ति है। कुछ लोग इसे जन्मजात विशेषता मानते हैं, तो कुछ इसका कारण विशेष प्रकार का आहर एवं वातावरण का प्रभाव बताते हैं। कुछ भी हो उनका विनोदी स्वभाव उनके आन्तरिक सुख और मानसिक संतुष्टि को ही अभिव्यक्त करता है, जो ऐसी विषम परिस्थिति में शायद ही कही देखने को मिले।
वे बाह्य सुन्दरता के बजाय आन्तरिक को महत्वपूर्ण मानते हैं। रूप लावण्य की दृष्टि से तो वे कई विशेष आकर्षक नहीं होते, पर उनकी व्यवहार कुशलता देखते ही बनती है। सज्जनता, शालीनता, सहिष्णुता, विनम्रता उनमें कूट-कूट कर भरी होती है। परोपकारिता की वृत्ति इतनी बढ़ी चढ़ी होती है कि यदि कोई भूला भटका पथिक एस्किमो बस्ती में पहुँच जाय तो परिवार के सदस्य की भाँति उनका मान सम्मान करते हैं। वे बहादुर भी कम नहीं होते हैं, मगर इसकी कसौटी अपने समुदाय के लोगों पर शासन व शोषण करना वे नहीं मानते। उनकी लड़ाई तो मात्र प्रकृति से है। उस लड़ाई में उन्हें कितनी सफलता मिलती है, महत्व इस बात को देते और सही अर्थों में पराक्रम इसे ही मानते हैं।
दूसरों के मुँह का ग्रास छीनना तो उनने सीखा ही नहीं। यह जानकर आश्चर्य होता है, कि जहाँ समस्त संसार के तथाकथित “सभ्य’ समाज में आज ऐसे कृत्यों का बोलबाला है, वहीं दूसरी ओर असभ्य कहलाने वाले इन एस्किमो को ऐसी प्रवृत्ति छू भी नहीं है। एकता और समता के जिन थोथे आदर्शों की बात सभ्य समाज लम्बे समय से करता आ रहा है, वह आदर्श इन अविकसित समझी जाने वाली जातियों में न जाने कब से विद्यमान है। जिस आध्यात्मिक साम्यवाद की आज दुनिया को महती आवश्यकता है, उसका जीता जागता स्वरूप इस समुदाय में स्पष्ट देखा जा सकता है। उदाहरण के लिए यदि कोई शिकारी शिकार मार कर लाता है, तो उसका थोड़ा थोड़ा अंश अन्य साथियों को भी देना पड़ता है, भले ही उनसे शिकार में कोई मदद मिली हो या नहीं। इतना ही नहीं पूरी बस्ती के हर परिवार को इसका कुछ हिस्सा दिया जाता है। इस प्रकार मार्क्सवाद का प्रसिद्ध सूत्र ‘वन फॉर आल एण्ड आल फॉर वन” को चरितार्थ होते हुए यहाँ प्रत्यक्ष देखा जा सकता है, और इसके माध्यम से वे एक वृहत परिवार का उत्कृष्ट नमूना संसार के सामने प्रस्तुत करते हैं। वे न तो झूठ बोलते हैं, न चोरी की प्रवृत्ति उनमें होती है।
इस तरह यदि हम उनके आन्तरिक गुणों को देखें तो उन्हें असभ्य और अविकसित कहना किसी भी प्रकार समीचीन न होगा। कोई समुदाय अभावग्रस्त हो, सुविधा-साधनों की कमी में जी रहा हो, तो भौतिक दृष्टि से वह प्रतिगामी हो सकता है, किन्तु असभ्य नहीं। एस्किमो इसी वर्ग में आते हैं। उनकी अन्तःकरण की उत्कृष्टता उन्हें शेष विश्व से कहीं अधिक सभ्य और सुसंस्कृत बनाती है। इसी विभूति की ही तो आज मानव को जरूरत है।