सभी चतुष्पद ब्रह्मा जी के पास पहुँचे और उनमें से कौन वरिष्ठ है? पूँछने लगे। ब्रह्मा जी ने इसके लिए दौड़ की प्रतिस्पर्धा लगाई और कहाँ जो एक मील की दौड़ में सबसे आगे निर्धारित शिला पर पहुँचेगा, उसी को वरिष्ठ माना जायेगा।
जानवरों में छोटे बड़े सभी थे। उनमें एक धूर्त था गिरगिट। प्रतिस्पर्धा में तो वह भी शामिल था। पर दौड़कर आगे निकल जाने की हिम्मत न थी। सो उसने धूर्तता से काम लिया और बाजी जीतने की ठानी। मोटे बन्दर के आगे निकल जाने की सम्भावना देख कर गिरगिट उसकी पूँछ में इस तरह चिपक गया कि इस नये साथी का उसे पता तक न चला।
दौड़ पुरी हुई चट्टान पर पहुँचकर गिरगिट पूँछ छोड़कर उछला और बन्दर से पहले ही जा बैठा बन्दर ने बैठने की कोशिश की तो आँख लाल पीली करता हुआ वह बोला देखता नहीं मैं पहले से ही यहाँ बैठा हूँ।
गिरगिट की जीत घोषित कर दी गई। पर जब ब्रह्मा जी को वस्तुस्थिति का पता चला तो वे बहुत क्रुद्ध हुए और कहा तुझे पीढ़ी दर पीढ़ी अप्रामाणिक ठहराया ओर तिरस्कृत किया जाता रहेगा। यहाँ तक कि धूर्तों को तरी संज्ञा देकर अपमानित किया जाय करेगा। रंग बदलते रहने वाले गिरगिट को अभी भी अविश्वसनीय माना जाता है