पागल या प्रतिभावान

November 1987

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छोटा सा चौदह सौ ग्राम का मस्तिष्क जो एक लिबलिबा द्रव्य मात्र है, अन्दर प्रवाहित विद्युत के “स्पार्क” के इधर-उधर होते ही कुछ ही कुछ चमत्कारी विभूतियाँ दिखाने लगता है। इंग्लैण्ड के ब्रिस्टल के पागलखाने में तीन बच्चे भरती हैं। सायकिएट्रिस्टों के अनुसार वे ऐसे तो पूरी तरह पागल हैं और अपना दैनन्दिन रुटीन कार्य भी सलीके से नहीं कर पाते, किन्तु तीनों एक-एक विषय के पारंगत हैं। उम्र इनकी छोटी है किन्तु वे अपने विषय विशेष में पूर्णतः पारंगत हैं, एवं कोई भी उस विद्या का विद्वान उनसे पूरी गम्भीरता से चर्चा मात्र ही नहीं अपितु मार्गदर्शन भी ले सकता हैं।

एक बच्चा है - पीटरसन। उम्र उसकी है 14 वर्ष। वह वैसे तो पूरी तरह पागल है, किन्तु उसके सामने दुनिया का बड़े से बड़ा वायलिन वादक भी कोई नवीनतम - क्लिष्टतम धुन बजाये तो वह मात्र सुनकर उसे पुनः बजा सकता है। उससे कभी चूक नहीं होती। यही नहीं, वह उसमें संशोधन भी सुझाता है वह उसे और भी मधुर बना देता है। वायलिन की कोई लगातार दस ध्वनियां भी बजाये तो वह उन सबको उसी क्रम में दुहरा देता है। बड़े बड़े संगीतज्ञ उसके समझ आकर हतप्रभ होकर रह जाते हैं।

दूसरा पागल है- डेविट कीट। किन्तु अतीव प्रतिभा सम्पन्न चित्रकार है। कोई भी सुन्दर दृश्य या क्लिष्ट संरचना का भवन हो तो वह तुरन्त उसकी अनुकृति बना देता है। एक बार दृश्य या चित्र देखने के बाद उसे पुनः देखने की जरूरत नहीं पड़ती। स्वतः भी वह कभी आड़ी टेढ़ी रेखाएँ खींचकर चित्र बनाता रहता है। “वर्ल्ड ट्रेड सेण्टर” (यू.एस.ए.) के भवन के फोटो को देख कर ही उसने तीनों ही आयाम दर्शाता हुआ चित्र बना दिया।

तीसरे बालक का नाम है- स्टीवेन्स जो अति प्रतिभावान गणितज्ञ है कम्प्यूटर की तरह वह जटिल से जटिल गिनतियाँ तुरन्त कर दिखता है। विगत 700 वर्षों के किसी भी दिनाँक का वार, उस समय घटी घटनाएँ वह ऐसे बता देता है, जैसे उसके मस्तिष्क में वे चलचित्र की तरह घूम रही हों।

किन्तु एक बात है। वहाँ तक तो ठीक है, जो तीनों की अपनी-अपनी प्रतिभा का क्षेत्र है इससे इधर-उधर होते ही तीनों उच्छृंखल हो जाते हैं व तीव्र आवेश में आकर सामने वाले को भागने पर मजबूर कर देते हैं। वैज्ञानिक यह जवाब देने में असमर्थ हैं कि ऐसा क्यों होता है?

न्यूरोलॉजिस्ट कहते हैं कि हमने विज्ञान के नवीनतम अनुसंधानों से मानव मस्तिष्क की थाह पाली है। किन्तु कोई पागल किसी विधा विशेष में कैसे पारंगत है, यह प्रश्न अनुत्तरित है। ऐसा लगता है, मानों विधाता ने मनुष्य के साथ मसखरी है। उसने न्यूरोसर्किट में सारे तारों के जंजाल को तो अस्त व्यस्त कर दिया, किन्तु एक विभूति विशेष वाले सेण्टर को जरूरत से अधिक विकसित कर दिया। एक सम्भावना की भी झलक उस परमसत्ता ने माटी का पुतला बनाने वाले कुम्हार ने मनुष्य को दिखा दी कि वह मया के जंजाल में उलझा एक पागल है व छिपी क्षमताओं के प्रति अनजान है। यदि उसने अपने अन्दर छिपी सामर्थ्य को जाना व विकसित किया होता तो संभवतः वह भी विलक्षण सामर्थ्य सम्पन्न होता।

आइंस्टीन एक अति प्रतिभावान वैज्ञानिक थे, किन्तु अपने चिन्तन में इतना खोए रहते थे कि आस पास की उन्हें खबर ही नहीं रहती थी। एक बार घूम कर आए तो छड़ी को कमरे के कोने में रखकर स्वयं लेटने के स्थान पर छड़ी को बिस्तर पर लिटा दिया व विचारों में खोये स्वयं छड़ी के स्थान पर कोने में खड़े हो गए। उन्हें यहाँ पागल नहीं कहा जा रहा। विचार शृंखला की जटिलता का परिचय दिया जा रहा है। हो सकता है, इंग्लैण्ड क इन तीनों पागलों में मैनुहिन जैसा वयलिन वादक, पिकासो जैसा चित्रकार या रामानुजन् जैसा गणितज्ञ छिपा पड़ा हो। कुछ भी हो, वह नियन्ता है, बड़ा अद्भुत व अपने घटक मनुष्य को सतत् संकेत देता ही रहता है।


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