अनागत की झाँकी दिखाने वाले सार्थक सोद्देश्य स्वप्न,

November 1987

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स्वप्न यों तो सभी को आते है पर जन सामान्य को दिखाई पड़ने वाले सपनों में से अधिकाँश में अवचेतन मन का भटकाव ही रहता है। ऐसे सपनों के दृश्य बेसिर पैर के औंधे -सीधे होते है। जिनमें किसी प्रकार की क्रमबद्धता का सर्वथा अभाव होता है किन्तु भावनाओं को थोड़ा भी परिष्कृत परिमार्जित कर लिया जाये तो सार्थक और उच्च स्तरीय स्वप्नों को देखा व स्मरण रखा जाना सम्भव है, जिनमें अनागत भविष्य की महत्वपूर्ण सूचनायें निहित हों।

अण्डरस्टेण्डिग ह्यूमन बिहेवियर के ग्यारहवें खण्ड के ‘टुमारो टुडे’ शीर्षक के अंतर्गत देश -विदेश के अनेकों मूर्धन्य मनीषियों के ऐसे कितने ही विवरण छपे है, जिनने अनागत भविष्य की संभाव्य घटनाओं को प्रत्यक्ष देखा था। जो यथार्थता की कसौटी पर भी पर भी बाद में सही उतरी। ऐसे व्यक्तियों के निष्णात् इंजीनियर व कुशल ब्रिटिश यान चालक जे0 डब्ल्यू0 डुने प्रख्यात है, जिन्होंने अपनी पुस्तक “एन एक्सपेरीमेन्ट विद टाईम” में ऐसे अगणित घटनाक्रमों का उल्लेख किया है। एक स्थान पर अपनी पुस्तक में उनने लिखा है कि एक बार जब वे बोअर युद्ध के दौरान दक्षिण अफ्रीका में नियुक्त थे, तो एक रात को एक नाटकीय स्वप्न देखा। ऐसा लगा कि वे कि वे एक पहाड़ी ढलान पर खड़े-खड़े ऐसे ज्वालामुखी को देख रहे है जो फटने ही वाला है। इस भीषण नरसंहार का अनुमान कर वे चिल्ला-चिल्ला कर लोगों को सचेत करने लगे और तुरन्त ही फ्रांसीसी अधिकारियों से उनकी सहायता की अपील की। उन्हें अन्यत्र ले जाने के लिये वायुयान भेजे जाने का आग्रह किया इस बीच उनने देखा कि इस भयंकर प्राकृतिक आपदा से लगभग चार हजार लोगों की जानें चली गई। अनेक लोग अपंग अपाहिज बन गये। बच्चों के करुण क्रन्दन और बड़ों की आर्तनायुक्त चीत्कार से इस मध्य उनकी आँखें खुल गई।

इस प्रकार की अनेक घटनाओं को “डुने ड्रीम्स” नामक अपनी प्रसिद्ध उनने संकलित किया है, जिसका प्रथम प्रकाशन सन 1930 में हुआ। जब यह पुस्तक समकालीन ब्रिटिश मनोवैज्ञानिक डा. जे.सी. बार्कर के हाथों लगी तो वे मानों सोते से जगे। उसे आधोपान्त पढ़ने के बाद उनके तार्किक मन में इस प्रकार के विचार कुलबुलाने लगे कि जब भावी घटनाओं का पूर्वाभास समय रहते ही मिल जाता है तो क्या मानवीय प्रयासों के द्वारा जन-धन की हानि टाली जा सकना संभव नहीं? और यदि शक्य है तो ऐसे प्रयास क्यों ना किये जायें। इस प्रकरण पर उनने गंभीरता पूर्वक विचार किया। चूँकि डा0 बार्कर को भी डॉक्टर डुने जैसे ही सपने आते थे और उनमें से अधिकाँश सही सिद्ध होते थे, इसलिये भी डा. बार्कर को ने इस दिशा में विशेष रुचि दिखाई।

घटना सन 1966 की है। रात्रि में डा0 बार्कर ने एक लोमहर्षक विभीषिका दृश्य देखा। वेल्स क्षेत्र की गगनचुम्बी पर्वतमालाओं में की उपत्यिका में बसा एक गाँव काई लगे वृहद शैल खण्डों के यकायक स्खलन होकर गिरने लुढ़क पड़ने की चपेट में आ गया है। खण्डहर हुए मकानों के छतों छप्परों के नीचे दबकर अगणित लोगों की जानें चली गयी। तराई क्षेत्र में चल रहे विद्यालय के लगभग सभी छोटे बड़े बच्चे इस प्राकृतिक आपदा में धराशायी हो गये। बच्चों की असहाय हृदयस्पर्शी करुण चीत्कार से यकायक जग पड़े। सोचने लगे “ आज इस स्वर्ण अवसर को हाथ से नहीं जाने दूँगा। बचाव का जितना प्रयत्न हो सकेगा, करूंगा। इससे एक आर जहाँ जान माल की क्षति को रोका जा सकेगा, वहीं दूसरी ओर ऐसी महत्वपूर्ण सूचनाओं का लाभ व्यक्ति और समाज को मिलते रहने से वे स्वप्न की सार्थकता को समझ सकेंगे, और भविष्य में इन्हें झुठलाने, इनकी उपेक्षा करने की बजाय समय रहते चेत कर इनका फायदा हस्तगत कर सकेंगे। “इसी उधेड़बुन में प्रातः हो चला। सूर्य निकलते ही लन्दन के प्रतिष्ठित राष्ट्रीय दैनिक पत्र “ईवनिंग स्टैर्ण्डड” के प्रातः संस्करण के मुख पृष्ठ पर सुर्खियों में “वार्निंग इम्मीडियेट क्लीयरिंग हाउसएवर्टिंग कैमेलिटी” शीर्षक के अंतर्गत सनसनीखेज सूचना प्रकाशित करायी पर होनी को टाला नहीं जा सका। दुर्भाग्य से समाचार पत्र उस दिन उक्त क्षेत्र में समय पर नहीं पहुँच सका। जब पहुँचा तब काफी देर हो चुकी थी। फिर भी सूचना मिलते ही काफी लोग माल - असबाब को लेकर सुरक्षित क्षेत्र की ओर भागने लगे। घटना ठीक अपने निश्चित समय में घटी, जिसमें काफी प्रयासों के बाद भी बहुत सी जानें गयी। ‘स्वप्न संकेत द्वारा बचाव’- इस विद्या के प्रणेता डा0 बार्कर स्वयं भी इस घटना के दौरान ग्रामीणों की सुरक्षा व्यवस्था करने में अपनी जान गंवा बैठे। इस प्रकार अनागत भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं के नियन्त्रण और फेरबदल करने जैसे अतिमहत्वपूर्ण शोध-कार्य को और आगे नहीं बढ़ाया जा सका। इसी विपदा ने इस शोध कार्य का पटाक्षेप कर दिया।

इसी प्रकार क्लीवलैण्ड के जुलियस डिटमैन ने एक बार स्वप्न देखा कि निकटवर्ती बाँध अचानक टूट गया है और बड़ी संख्या में उस क्षेत्र में जान माल की क्षति हुई है। वह स्वयं भी उसकी चपेट में आ गया है एवं डूबता उतराता पानी में बहा जा रहा है। हाथ-पैर थक कर चूर हो गये है और अब वह डूबने ही वाला है। इस घबराहट की स्थिति में उसकी नींद खुल जाती है। तब प्रातः काल होने ही वाला था। थोड़ी देर और रुक कर बाँध अधिकारियों को डिटमैन ने अपने सपने की बात बतायी। चार अधिकारी अविलम्ब बाँध के निरीक्षण के लिये निकल पड़े। निरीक्षण के दौरान बाँध में एक जगह उन्हें एक बड़ा सूराख नजर आया, जिससे पानी बड़ी तेजी से बाहर निकल रहा था। तुरन्त स्थानीय लोगों को इसकी सूचना दे दी गई और किसी सुरक्षित स्थान पर चले जाने को कहा गया। इधर सूराख को बन्द करने का प्रयास किया जाने लगा, पर सारे प्रयत्न निरर्थक साबित हुए। सूराख का आकार निरन्तर बढ़ता ही चला जा रहा था। जब जल प्रवाह को रोकना और सूराख को बन्द करना हर प्रकार से बेकाबू सिद्ध हुआ, तो काम करने वाले मजदूर व अधिकारी भी जल्दी ही वहाँ से अन्यत्र चले गये। एक घण्टे बाद बाँध टूट गया, पर तब तक उस क्षेत्र की आबादी करीब-करीब खाली हो चुकी थी। हाँ फसल और मकान अवश्य बर्बाद हो गये। एक स्वप्न ने व्यापक जन हानि को बचा लिया।

यही नहीं, सपनों द्वारा यदा कदा गढ़े धनों की सूचना मिल भी जाती है। वेट्टी फाक्स श्रापशायर, इंग्लैंड के एक गरीब किसान की पत्नी थी। दोनों परिश्रमपूर्वक खेत में काम करते और उससे जो कुछ भी प्राप्त होता, उसी से अपना जीवन चला रहे थे। किसान की पत्नी सात्विक विचारधारा की थी। एक दिन उसने स्वप्न में देखा योद्धा की वेशभूषा में कुछ लोग मिट्टी के नीचे कुछ दबा कर भाग रहे है। वेट्टी फैक्स ने इस ओर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया, पर एक सप्ताह बाद फाँक्स को पुनः वही स्वप्न दिखाई पड़ा तो उसकी उत्सुकता बढ़ी। फावड़ा लेकर स्वप्न में निर्दिष्ट स्थान को उसने खोदा तो, नीचे सोने-चाँदी के सिक्कों से भरा एक घड़ा मिला। उसकी दरिद्रता मिटी और दंपत्ति धनवान बन गये। धन का उन्होंने दूसरों को लाभ पहुँचाने वाले कार्यों में ही सार्थक सुनियोजन किया।

एक बार श्री अरविन्द ने अपने एक ऐसे शिष्य को सपने में देखा, जिसका चेहरा काफी विभत्स था। वास्तविक जीवन में उसके शिष्य का चेहरा ऐसा बिल्कुल नहीं था। छः वर्ष बाद उसका वह सपना सच निकला। उस शिष्य का चेहरा स्वप्न में देखे चेहरे जैसा ही कुरूप हो गया था।

उपरोक्त घटनाओं में स्वप्न दृष्टा के जीवनक्रम शुद्ध सात्विक थे। ‘सादा जीवन उच्च विचार’ को वे अपना आदर्श मानते और व्यवहारिक जीवन में उनका अधिकाधिक पालन करते थे। विचारधारायें एवं भावनाएँ उच्च स्तर की थी। यदि हर व्यक्ति अपने जीवन को इस आदर्शवादी साँचे में ढाल सके, भाव संवेदनाओं को सात्विक बना सके, तो उच्च स्तरीय व सार्थक स्वप्न उनका एवं समष्टि का भली भाँति हित साधन कर सकते है। स्वप्न मात्र मृगमरीचिका नहीं है, उनमें से कई सोद्देश्य होते है। मानवीय मस्तिष्क रूपी कल्पवृक्ष से जुड़ी इस विद्या के महत्व को स्वीकारा व इस दिशा में प्रगति के प्रयास किये जाने चाहिये।


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