विक्षुब्ध मनः स्थिति में भटकती प्रेतात्मा

November 1987

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

श्री ए.पी. सीनेट विश्व के एक प्रख्यात परामनोवैज्ञानिक हुए हैं। परामनोविज्ञान के क्षेत्र में उनका वर्चस्व रहा है। उनने काफी शोधें की हैं और इससे संबंधित अनेक पुस्तकें भी लिखी हैं। अपनी एक पुस्तक में उनने एक विलक्षण घटना का उल्लेख किया है।

एकबार वे एक झील के किनारे टहल रहे थे। इतने में देखा कि एक युवती झील की ओर बढ़ी चली आ रही है। उनने सोचा कि शायद वह भी चहलकदमी के उद्देश्य से आ रही हो। अतः उस पर कोई विशेष ध्यान दिये बिना अपनी मस्ती में टहलते रहे। तभी झील में छपाक की आवाज हुई। सीनेट ने नजरें उठायीं तो पता चला कि युवती आत्म हत्या के लिए कूद चुकी है और बचाने का अवसर उनके हाथ से निकल चुका है। चीख पुकार मचायी तो ढेर सारे लोग इकट्ठे हो गये। कइयों ने बचाने के उद्देश्य से छलाँग लगा दी। देर तक पानी के अन्दर युवती की ढूंढ़ खोज चलती रही, पर कुछ पता न चला। अन्ततः पुलिस में रिपोर्ट की गई। रिपोर्ट दर्ज तो कर ली गई, मगर इसके साथ ही एक रहस्योद्घाटन हुआ। पुलिस ने बताया कि कुछ वर्षों से लगातार हर वर्ष इसी दिन इसी वक्त इसी प्रकार की आत्महत्या की रिपोर्ट दर्ज करायी जाती रही है। पिछले कुछ वर्षों की फाइलें खोली गयीं तो यह जानकर अत्यन्त आश्चर्य हुआ कि प्रत्येक वर्ष रिपोर्ट में एक ही उम्र की युवती दर्ज थी। इतना ही नहीं उसकी हुलिया और वस्त्र भी समान थे।

सीनेट की जिज्ञासा बढ़ी तो उन्होंने इसका इतिहास जानना चाहा। पुरानी फाइलों को देखते हुए पुलिस ने बताया कि यह घटना पिछले सोलह वर्षों से घटती चली आ रही है। सोलह साल पूर्व इन्हीं दिनों इसी हुलिया की एक लड़की ने उक्त झील में आत्महत्या कर ली थी। परिवार वालों ने इसके शव को खोज निकाला और दफना दिया। तभी से इस घटना की पुनरावृत्ति होती आ रही है। इसके पीछे महात्मा का उद्देश्य क्या है? अब तक नहीं जाना जा सका।

ऐसी घटनाओं की पुनःपुनः आवृत्ति क्यों होती है? इसकी व्याख्या करने का प्रयास सुप्रीम एडवेंचर “टेकनीक्स ऑफ एस्ट्रल प्रोजेक्शन” एवं “मोरल एस्ट्रल प्रोजेक्शन” के विश्व विख्यात लेखक राबर्ट कूकल ने अपनी उपरोक्त पुस्तकों में किया है। उनका कहना है “जब अकाल मृत्यु होती है, तो मरने वाले का सूक्ष्म शरीर तुरन्त यह अनुभव करने में असमर्थ होता है कि वह मर रहा है। सरोवर में पत्थर फैंकने से जिस प्रकार तरंगें देर तक आती रहती हैं, उसी प्रकार मृतक व्यक्ति का सूक्ष्म शरीर भी मध्यवर्ती काल में उन घटनाओं की पुनरावृत्ति करता है। ऐसे उदाहरणों में एक ही घटना की बार-बार आवृत्ति का यही कारण है।”

इसके अतिरिक्त राबर्ट कूकल ने अपनी उक्त पुस्तकों में बहुत सारे ऐसे तथ्य भी संकलित किये हैं, जो उनने मृतात्माओं से प्रत्यक्ष संपर्क, वार्तालाप एवं प्रयोगों के आधार पर खोजे हैं। आपने खोज निष्कर्ष के आधार पर वे भारतीय तत्वज्ञान की ही पुष्टि करते हैं कि मरणधर्मा सिर्फ स्थूल शरीर है आत्मा अविनाशी है। व्यक्ति की इच्छाएं, आकांक्षाएं, वासनाएँ सभी स्थूल शरीर के साथ जुड़ी रह कर जीवात्मा का दूसरे जन्म में भी पीछा करती हैं और अगले जीवन में भी दिखाई पड़ती है। जो जितना इनके वशीभूत होता है उनके एस्ट्रल शरीर उतनी ही देर से ईथर से मुक्त होता है, फलतः जीवात्मा को सम्पूर्ण वातावरण अन्धकारमय और भयावह लगता है और तथा अनेक प्रकार की यातनाएँ इस मध्यवर्ती काल में उसे झेलनी पड़ती है, इसे ही भारतीय आर्ष ग्रन्थों ने नरक की संज्ञा दी है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118