वक्रतुण्डाय नमनोमः

November 1987

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

एक बार सभी देवता एक गोष्ठी में बैठे विचार विमर्श कर रहे थे कि सर्वप्रथम किस देवता की पूजा की जाये। अन्त में निश्चय हुआ कि जो देवता तीनों लोकों की परिक्रमा सबसे पहले कर लेगा, उसे ही यह सम्मानित पद दिया जायेगा। अतः सभी देवता अपने वाहनों पर चढ़ कर चल दिये परन्तु गणेश जी ने अपनी विवशता को विचार कि उनकी भारी शरीर एवं नन्हा सा मूषक वाहन है इतने से ही यह महत् कार्य कैसे सम्भव हो सकता है? तभी उनकी बुद्धि में स्फुरणा हुई। अपने माता पिता की परिक्रमा करके निर्णय स्थल पर जा पहुँचे और इस प्रकार प्रथम पूजे जाने का सम्मान प्राप्त किया। वस्तुतः इसमें उनकी प्रखर बुद्धि की ही मुख्य भूमिका थी। उनका गज मस्तक इसी का परिचायक है।

उनका एक ही दाँत है, क्योंकि दूसरे की लेखनी बनायी थी। महाभारत ग्रन्थ की रचना का समय आया तो प्रश्न उठा कि उसे लिखे कौन? व्यास जी ने इसके लिए गणेश जी को उपयुक्त समझा और उनसे लिखने का आग्रह किया। इसके हेतु एक सुदृढ़ लेखनी की आवश्यकता थी। गणेश जी ने अपना दाँत उत्तम समझा और उसका प्रयोग किया। विद्यार्जन के लिए धर्म और न्याय के लिए श्रेष्ठ कार्यों के लिए प्रिय-से-प्रिय वस्तु का भी त्याग करना पड़े तो पीछे नहीं हटना चाहिए। यही इसके पीछे भाव है। उनके अपने सिर का जगह हाथी सिर का होना अहंकार नाश का द्योतक है। उनके मस्तक पर चन्द्रमा की सी शोभा उनके शान्त, संतुलित, उज्ज्वल ज्ञान का प्रतीक है। गणेश जी के कान तथा पेट दोनों बड़े हैं, अर्थात् हमें उनके समान सब की बातें श्रवण करके अपने आप में, अपने बड़े पेट में सुरक्षित रख लेना चाहिए। आवश्यकता पड़ने पर समय आने पर ही उसका उद्घाटन करना चाहिए। छोटी आंखें हमें बुरी बातों को देखने से रोकती हैं। उनके आयुधों में पाश और अंकुश प्रमुख हैं। पाशा व्यामोह और बन्धन का प्रतीक है। यह हमें भवबन्धनों से उबरने का स्मरण दिलाता है, जबकि अंकुश दुष्प्रवृत्तियों पर नियंत्रण रखने की चेतावनी देता है। विशाल शरीर में महानता का विशाल व्यक्तित्व का संदेश है।

उनके विशाल शरीर का वाहन छोटा मूषक है, इसमें अंतर्विरोध जैसी कोई बात नहीं है। वस्तुतः मूषक, प्रवृत्ति का द्योतक है, इसकी प्रवृत्ति है चोरी करना। मनुष्य में जो पाप की वृत्ति है, यह उसी का बोधक है। गणेश जी उस पर सवारी करते हैं, उस पर चरण प्रहार करके उसे दबाये रहते हैं, ताकि ऐसी वृति किसी में पनपे नहीं। चूहे का एक और गुण है। संचय वृत्ति। वह आगे की बात सोचता है। अनुकूल समय में ही प्रतिकूल स्थिति का भी भोजन इकट्ठा कर लेता है ताकि अगले समय में अन्न संकट की स्थिति न देखनी पड़े। यह इसकी दूरदर्शिता है। मनुष्य को हर कार्य में ऐसी ही दूरदर्शिता विवेकशीलता का परिचय देना चाहिए तभी वह सफल जीवन जी सकता है। मोदक उनका प्रिय भोजन है। यह संघ शक्ति संगठन शक्ति एकता की प्रेरणा देती है। अकेला व्यक्ति तो उस चने के समान है जो भाड़ नहीं फोड़ पता। व्यक्तियों का सुसंगठित समाज ही बड़ा कार्य कर सकता है- प्रगतिशील बन सकता है। अकेलेपन में तो प्रतिगामिता ही हाथ लगती है। लम्बोदर का एक नया नाम गणेश गणपति भी है, जिसका अर्थ है गणों का स्वामी। पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ, पाँच कर्मेन्द्रियाँ और एक मन यह ग्यारह गण मनुष्य के भी हैं। उसे इन्हें वशवर्ती बनाकर उनका स्वामी होने का गौरव प्राप्त करना चाहिए।

यह सब गुण साथ ही मौन के रूप में वाणी संयम की शक्ति होने के कारण ही वे महाभारत जैसा महान ग्रन्थ लिख सके। असीम प्राण शक्ति किसी में नहीं होती। संयम द्वारा ही उसका संवर्धन कर सिद्धियों को करतलगत किया जा सकता है। विनायक श्रीगणेश के इन गुणों का अनुकरण करके हम भी सच्चे ईश्वर भक्त बन सकते हैं।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118