नये परिवर्तन नये निर्धारण

November 1987

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ब्रह्मवर्चस् की नूतन गतिविधियाँ

तर्क, तथ्य, प्रमाणों के इस युग में ब्रह्मवर्चस के वर्तमान स्वरूप एवं प्रतिपादनों ने जनमानस को, विशेषकर बुद्धिजीवी वर्ग को अपनी ओर खींचने में अभूतपूर्व सफलता हस्तगत की है। 1979 में इसकी स्थापना के बाद यह उत्तरोत्तर प्रगति की दिशा में ही अग्रसर है। शुभारंभ यज्ञ विज्ञान एवं साधना से मानसोपचार प्रक्रिया से हुआ था, किन्तु अब वनौषधियों का रासायनिक विश्लेषण, उनके प्रभावों का विवेचन, संगीत की शक्ति एवं मंत्र शक्ति का शरीर, मन, वनस्पति व जीव जन्तु वर्ग पर प्रभाव, विभिन्न साधना उपचारों व जीव जंतु वर्ग पर प्रभाव, विभिन्न साधना उपचारों की शारीरिक क्रिया कलापों पर प्रभाव डालने की क्षमता जैसे विषय प्रयोग परक शृंखला में सम्मिलित होते चले जा रहे हैं। दार्शनिक अनुसंधान संबंधी प्रतिपादन तो इस पत्रिका में समय-समय पर प्रकाशित होते रहे हैं। किन्तु प्रयोग निष्कर्षों हेतु वाँछित अवधि तक साधक वर्गों पर शोध प्रविधि के आधार पर अनुसंधान अनिवार्य था। अब क्रमशः ऐसी स्थिति बन रही है कि अपने अनुभव निष्कर्षों को बुलेटिन नुमा एक छोटे से प्रपत्र में अथवा इस पत्रिका के निर्धारित पृष्ठों पर समय-समय पर दी जाती रहे ताकि जनसाधारण को ब्रह्मवर्चस् के सक्रिय क्रिया-कलापों की जानकारी मिल सके।

यज्ञ अनुसंधान हेतु जो प्रायोगिक यज्ञशाला बनायी गयी थी, वह उपकरणों के बढ़ते चले जाने के कारण छोटी पड़ने लगी। अतः यही उचित समझा गया कि जो उपलब्ध है उसी में विस्तार कर लिया जाय। यज्ञशाला के पीछे इतना ही बड़ा एक परामर्श कक्ष था। अब उसे प्रदर्शनी कक्ष में स्थानांतरित कर दिया गया है। उस कक्ष को चारों ओर से काँच से बन्द कर उसमें वातानुकूलित यंत्र लगाया जा रहा है, ताकि संवेदनशील उपकरणों को धूप की तपन से बचाकर सक्रिय रखा जा सके। एक कम्प्यूटर इन्हीं दिनों इंग्लैण्ड से मंगाया गया है, जो विभिन्न आँकड़ों के विश्लेषण एवं जनसाधारण को चारों ओर लगे कलर माँनीटर्स द्वारा अन्दर चल रही गतिविधियों को दर्शाने में मदद देगा। संगीत शक्ति का महत्व, स्वरूप व प्रभाव बताने वाले “ड्युअल बीम प्रिसीजन आँसीलोस्कोप” यंत्र, यज्ञ धूम्र व रसायनों का विश्लेषण करने वाले “गैस लिक्विड क्रोमेटोग्राफी यंत्र” को भी इसी कक्ष में लगाया जा रहा है। एक पिरामिड भी केन्द्र में बनाया जा रहा है। जो यज्ञ ऊर्जा व ब्रह्माण्डीय चेतना, व्यष्टिगत कुण्डलिनी शक्त व ब्राह्मी चेतन ऊर्जा के मध्य संबंधों का रहस्योद्घाटन करेगा। आगामी बसन्त पंचमी तक इस प्रयोगशाला का सारा रूप निखर कर आने की सम्भावना है।

अभूतपूर्व साहित्य सृजन गीता का विश्व कोश

गीता का विश्वकोश बनाने की आकांक्षा गुरुदेव की बहुत पुरानी है। कईबार इस योजना को प्रारम्भ भी किया गया, पर सामयिक कार्य सामने आते रहने के कारण यह लम्बी अवधि में पूरी होने वाली योजना सुनिश्चित क्रम से गतिशील न हो सकी।

अब उन्होंने संकल्प कर लिया है कि जीवन के इस अंतिम अध्याय में उस महती योजना को पूरा करके रहेंगे। इसके लिये उनने इसी आश्विन नवरात्रि से योजनाबद्ध प्रक्रिया अपनाकर कार्य आरम्भ कर दिया है। आशा की जानी चाहिए कि उनके निजी विशाल ज्ञान-भण्डार और संदर्भ-ग्रन्थों के सहारे यह महान कार्य सम्भवतः एक वर्ष में ही पूरा हो जायेगा। गीता के अठारह अध्यायों पर हर अध्याय एक हजार पृष्ठ इस ग्रन्थ विशेष में होंगे। इसे हिन्दी के अतिरिक्त अन्य भारतीय भाषाओं में भी प्रकाशित करने की योजना है।

संसार भर की विभिन्न भाषाओं में प्रायः आठ हजार ग्रन्थों में गीता विषयक समीक्षा और टिप्पणियाँ उपलब्ध हैं। इनके महत्वपूर्ण अंशों का सार संक्षेप इसमें रहेगा। इसके अतिरिक्त संसार के सभी प्रमुख धर्मों और दर्शनों के गीता प्रतिपादनों से मेल खाते हुए उदाहरणों का भी समावेश रहेगा। आर्ष धर्म के अतिरिक्त ईसाई, मुस्लिम, पारसी, बुद्धतओं जैसे प्रमुख धर्मों में भी गीता के प्रतिपादनों में समर्थन संदर्भ हैं, यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया जायेगा।

गीता विश्वकोश इस दृष्टि से लिखा जा रहा है कि वह विश्व धर्म का, विश्व तत्व दर्शन का एक साँगोपाँग ग्रन्थ बन सके। संसार में कहीं भी बसने वाले किसी भी संस्कृति और विचार विज्ञान के अनुयायी इस नव-निर्मित ग्रन्थ से ऐसा प्रकाश प्राप्त कर सकें, जिससे सभी को परस्पर अपनापन घुला हुआ दृष्टिगोचर हो और उसमें समन्वय के सारे भरपूर मात्रा में विद्यमान परिलक्षित हों।

यह अपने ढँग का अभूतपूर्व ग्रन्थ होगा। इस एक को ही पढ़ने के बाद अनेकानेक तत्व दर्शनों को पढ़ने की आवश्यकता पूरी हो जायेगी। ग्रंथ के पूरा होने व छपने की परिजनों को एक दो वर्ष से अधिक की प्रतीक्षा न करनी पड़ेगी।

कल्पिक ऊर्जा के संयंत्र गायत्री नगर में

ऊर्जा के संसाधनों तेजी से हो रहा है। ऐसे में राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में एक आँदोलन का रूप देने के लिए शाँतिकुँज ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। गैर परम्परागत ऊर्जा संबंधी सभी उपकरणों को “नेडा” उ. प्र. के सहयोग से लगाने का कार्य आरम्भ हो चुका हे। इसमें पवन चक्की से विद्युत, सोलर फोटोवोल्टिक सेल्स से कुएँ से जल खींचना, कूड़े व लकड़ी की खाद में 20 के. डब्ल्यू., की गैसी फायर यूनिट का संचालन, धान की भूसी से 5 हार्स पावन के स्टलिंग इंजन को चलाना व सोलर सेल्स की पैनेल्स द्वारा बीस वाँट की ट्यूबलाइटों को जलाना, डिस्टिल्ड वाटर बनाना कुछ ऐसे प्रयोजन हैं जो इन उपकरणों से पूरा होते हैं। इस दर्शनीय स्थली को जिसमें बहुमूल्य वनौषधि वाटिका है, देखने दूर-दूर से यात्री आते हैं।

पारिवारिक दीप यज्ञ

हर घर में एक कुण्डी दीपयज्ञ आयोजित करने की योजना आशातीत रूप से सफल हो रही है। जिनने इनका स्वरूप, उद्देश्य और प्रभाव कहीं देख-सुन लिया है, वे उसके लिए प्रसन्नता पूर्वक स्वीकृत दे देते हैं और जल्दी व्यवस्था करने का आग्रह करते हैं।

प्रयुक्त होने वाली उपचार सामग्री की लागत प्रायः एक रुपया आती है। उपस्थित जनों का स्वागत मात्र सौंफ, धनिए, शीतल जल से किया जाय, यह प्रावधान पहले ही है। इसलिये भी यह आयोजन बहुत सस्ते रहते हैं। देखने में आकर्षक लगते हैं। मण्डप मात्र झंडियों, बंदनवारों से बन जाता है। जो लोग गायत्री मंत्र का शुद्ध उच्चारण नहीं कर सकते, उनके लिये “हरि ॐ तत्सत्” का मानसिक जप करते रहने के लिये कह दिया जाता है।

इन परिवार दीप यज्ञों में महिलाओं, बालकों, गृह संचालकों को विशेष रूप से संबंधित किया जाता है। उन्हें कुरीतियों, अंध परम्पराओं को छोड़ने का उनसे विशेष रूप से आग्रह किया जाता है और प्रगति शील बनने की प्रेरणा देने वाले प्रवचन दिये जाते हैं। जिस परिवार के सम्मुख जो समस्याएँ प्रमुख हैं, उन्हीं का समाधान उन सबको बताया जाता है।

पारिवारिक पंचशीलों का प्रसार इन घरेलू आयोजनों का प्रधान लक्ष्य है। श्रमशीलता, मितव्ययिता, शिष्टता, सुव्यवस्था, सहकारिता के सद्गुणों से प्रत्येक परिवार को सुसम्पन्न बनाने की यह योजना लोकप्रिय हो रही है।

एक दिवसीय दीपयज्ञ एवं सूखे का सामना

अब क्षेत्र में गाँव-गाँव में सौ कुण्डी स्तर के दीप यज्ञों की शृंखला चल पड़ी है। याजकों से प्रौढ़ शिक्षा, दहेज विरोध तथा नशा निषेध, घरेलू शाक वाटिकाओं को लगाने की प्रतिज्ञा कराई जा रही है। सूखे से निपटने के लिये जगह-जगह श्रमदान मंडल बनाये जा रहे हैं। असमर्थों की सहायता के लिये मुट्ठी फण्ड निकालने को कहा गया है। बिहार, गुजरात, उड़ीसा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश सभी अंचलों के परिजनों से इसी प्रकार के समाचार प्राप्त हुए हैं।


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