जो संसार को भव-बन्धन कहते हैं और उसे माया जाल बताकर खिंचे खिंचे रहते हैं। वे भगवान की सर्वोपरि कृति की अवमानना करते हैं। त्याज्य तो अपने में समाई दुर्भावना है, छोड़ने और कोसने लायक वही है।