मनुष्य हतप्रभ है, इन अबूझ पहेलियों से

November 1987

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आये दिन प्रकृति जगत में एवं दैनिक जीवन में ऐसी अनेक घटनाएँ घटती रहती है, जिनका कारण जानना अत्यन्त कठिन होता है। इतना सुनिश्चित है कि ये निरुद्देश्य नहीं होतीं। उनमें कोई न कोई रहस्य छिपा होता है। हम उन्हें नहीं समझ पाते, यह बात दूसरी है। यदि इन्हें जाना जा सके, तो इन अबूझ जैसी लगने वाली कितनी ही पहेलियों को सरलतापूर्वक समझ कर अपनी जिज्ञासा को शान्त किया व पिण्ड ब्रह्माण्ड संबंधों को जाना जा सकता है।

केण्ट इंग्लैण्ड की कु. मोयट ने जून 1953 में एक स्वप्न देखा, जिसमें एक अजनबी उससे अपना चित्र बनाने पर जोर दे रहा था। मोयट को सपना कुछ अटपटा सा लगा उसे यह समझ में नहीं आया कि वह व्यक्ति ऐसा क्यों कह रहा है, फिर भी अनमने मन से दूसरे दिन स्मृति के आधार पर उसने तस्वीर बनायी। देखने वालों ने बताया कि यह स्थानीय गिरजाघर के पादरी हयृज का चित्र है जो अब से 25 वर्ष पूर्व दिवंगत हो चुके हैं। दोनों की कभी मुलाकात नहीं हुई, फिर क्यों पादरी ने मोयट को अपनी तस्वीर बनाने के लिए प्रेरित किया। यह आज भी उसके लिए एक पहले बनी हुई है।

इसी प्रकार एक घटना 28 जून 1918 को इंग्लैण्ड में घटी। हेम्पशायर ने एक पादरी जोसेफ डील्यानी को एक पत्र मिला, जिसमें लिखा था “फादर हमारी पत्नी और हम एक गहरी दुरभिसन्धि में फंस चुके हैं। बचने की कोई उम्मीद नहीं हैं। आपकी सहायता की आवश्यकता है।” पादरी अभी इस विषय में सोच ही रहा था, कि उन्हें सहायता कैसे पहुँचायी जाय कि देखते ही देखते चिट्ठी के सारे अक्षर गायब हो गये और कोरा पत्र उसके हाथ में रह गया। पादरी को बहुत आश्चर्य हुआ। लगा कि कोई जादुई पत्र है। बहुत सोचने के बाद भी जब उनकी समझ में कुछ नहीं आया तो कोरी चिट्ठी को उसने मेज पर रख दी। तब उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब इसके ठीक 10 घण्टे बाद उस पत्र में पुनः कुछ शब्द उभरे जिससे कहा गया था कि “आर्कड्यूक फर्डीनाण्ड एवं उनकी पत्नी की गोली मार कर हत्या कर दी गयी। है। बाद में अखबारों द्वारा इसकी पुष्टि भी हो गई। यह चिट्ठी आज भी उस परिवार के पास सुरक्षित है। अचम्भा तो इस बात का है कि आरम्भिक सूचना के माध्यम से संकेत देकर उसमें नई खबर कैसे अंकित हो गई।

मेसाचुसेट्स का जान जेकप सन् 1956 में अपने मधुमक्खी पालन केन्द्र पर ही मर गया। जब वह मरा तो हजारों लाखों की संख्या में मधुमक्खियाँ उसके पार्थिव शरीर के चारों और एक घण्टे तक मँडराती रहीं। इस दौरान मक्खियों ने किसी को भी लाश कि निकट नहीं आने दिया। इसके बाद वे किसी अन्य स्थान की ओर चल पड़ी और फिर कभी लौट कर नहीं आयी।

ऐसी ही एक घटना आस्ट्रेलिया की है। सेव रोजर्स सिडनी में मधुमक्खी पालने का धन्धा करता था। 61 वर्ष की आयु में उसकी मृत्यु हो गई। जब उसका ताबूत कब्रगाह के लिए उठा तो उसके ऊपर हजारों मधुमक्खियाँ उड़ती रहीं और कब्रिस्तान तक साथ साथ चलीं। मधुमक्खियाँ वहाँ तब तक बनी रहीं जब तक मृतक को दफना नहीं दिया गया। इसके बाद वे वहाँ से चली गयी।

न्यू हेम्पशायर में श्रीमती मार्बल मेटकाफ नामक एक महिला रहती थी। 23 जुलाई 1961 के दिन उसके यहाँ एक विचित्र घटना घटी। वह जिस कमरे में रहती थी, उसकी एक दीवार गर्म होकर खूब लाल हो गई, मानो किसी ने उसे भट्ठी में रख कर तपाया हो। बाद में अग्नि शमन दस्ते ने उसकी आग बुझायी। यद्यपि बिजली संबंधी उसके कमरे में कोई गड़बड़ी नहीं थी। फिर ऐसा क्यों हुआ? यह विशेषज्ञों की समझ में नहीं आया।

न्यूजर्सी, अमेरिका की एक महिला को दाँतों द्वारा अचानक रेडियो समाचार सुनाई पड़ने लगा। जब लोगों से उसने इस अजीबोगरीब घटना का उल्लेख किया तो सबने इसे उसकी सनक समझी और उसकी उपेक्षा कर दी, किन्तु जब उसने रेडियो में प्रसारित हो रहे समाचार का सार सुनाया तो सभी दंग रह गये। सचमुच उस समय व ही समाचार प्रसारित हुए थे।

ब्रिजपोर्ट कनेक्टीकर के एक कर्मचारी को संगीत की स्वर लहरियाँ अचानक तब सुनाई पड़ने लगीं जब एक दिन उसने अपने एक दाँत से चाँदी भरवायी। तब से दिन रात रेडियो की संगीत धुनें उसके कानों में गूँजने लगी जिसका कारण अंत तक नहीं जाना जा सका। सम्भवतः धातु ध्वनि तरंगों को ग्रहण करने का माध्यम बन गई थी।

श्रीमती वर्जीनिया किम्मी टेक्सास की रहने वाली थी नवम्बर 1960 में उसके साथ यह व्यथा जुड़ गयी कि जब भी वह गर्म पानी के संपर्क में आती उसे चित्र विचित्र ध्वनियाँ सुनाई पड़ने लगती थीं। मैसाचुसेण्ट्स की एण्ड्रीया वेलन ने एक खरगोश पाल रक्खा था। जब भी वह खरगोश को पकड़ती तो उसकी आवाज मात्र से टेलीविजन का चैनल बदल जाता था। इस रहस्यमय प्रसंग का कोई भी विज्ञान सम्मत हल नहीं दे पाया।

कई बार लोग देखते-देखते अचानक गायब हो जाते हैं। फिर उनका कोई सूत्र संकेत हाथ नहीं लगता कि वे कैसे-कहाँ गये? टेनेसी का डेविड लैग्ग एक दिन अपने खेत में काम कर रहा था साथ में अन्य कृषक भी थे। कुछ घण्टे बाद वह न जाने कहाँ गायब हो गया। किसी को पता न चला। कई महीनों तक उसकी दूर-दूर तक खोज की गई। पर परिणाम निराशाजनक ही रहा। ऐसी ही एक घटना का उल्लेख “स्ट्रैन्जर दैन साइंस” नामक पुस्तक में मिलता है। घटना “एन्जीकुनी” नामक एक एस्किनों बस्ती की है। उस बस्ती के सभी स्त्री पुरुष और बच्चे अकस्मात कहाँ गायब हो गये, आज तक किसी को पता न चल सका। आश्चर्य की बात तो यह थी कि उनकी झोपड़ियाँ कुत्ते और शिकार करने के हथियार सभी सुरक्षित थे। सिर्फ उन्हीं का कहीं पता नहीं था।

जुलाई 1877 में नेवादा, अमेरिका के सिप्रंग पहाड़ी में एक ऐसे भीमकाय मनुष्य के टखने (एंकल) की हड्डी पायी गई जिसकी लम्बाई 31 इंच थी। लगातार कई दिनों तक विशेषज्ञों के माथा पच्ची के बाद भी पिछले किसी काल में इतने विशालकाय मनुष्य जाति के अस्तित्व को कोई जानकारी नहीं मिल सकी। फिर यह हड्डी किसकी हो सकती है। आज भी अविज्ञात है।

6 सितम्बर 1821 को माँटगोमरी में चोरी के अपराध में जान डेविस को फाँसी की सजा दी गई। मरने से पूर्व उसने चीख-चीख कर मजिस्ट्रेट से कहा-”मैं निर्दोष हूँ मुझ पर झूँठा आरोप लगाया है। इसका सबूत बड़ा प्रमाण यही होगा कि मेरे कब्र पर कभी भी घास नहीं उगेगी। “इतना कह कर वह कुछ क्षण के लिए मौन हो गये और भगवान से प्रार्थना करने लगा। प्रार्थना समाप्त होने पर उसे फन्दे से लटका दिया गया। इसके बाद लाश परिवार वालों ने दफना दी। डेविक की घोषणा के अनुसार सचमुच ही उसके कब्र पर एक भी घास अब तक नहीं उगी, जबकि आस-पास के अन्य कब्रों पर ढेर सारे खर पतवार उग आये। सरकार ने आस-पास की दो फुट गहरी मिट्टी कई कई बार बदली और घास लगायी, पर एक भी बार उसमें तृण नहीं उगा। इस प्रकार उसके निर्दोष होने की बात साबित हो गई, किन्तु उसके कब्र में वनस्पति नहीं उगने की घटना किसी की समझ में नहीं आयी।

अनेक अवसरों पर पक्षियों की सामूहिक आत्महत्या की घटनाएँ प्रकाश में आयी है। भारत में आसाम के जटिण्डा क्षेत्र में प्रति वर्ष यह घटना घटती है। हर बार हजारों हजार की संख्या में ये साल की एक निश्चित अवधि में अपने प्राणोत्सर्ग करते हैं ऐसे क्यों होता है? कौन व क्यों कोई उन्हें आत्मघात के लिए प्रेरित करता है, शोधार्थी इसका रहस्य अब तक नहीं जान सके। इसी से मिलता जुलता एक प्रकरण फ्राँस का है। अक्टूबर 1846 की रात्रि को अचानक अगणित पक्षी आकाश से धरती पर गिरने लगे। गिरने से पूर्व कुछ समय तक वे ऊपर मँडराते और फिर एकाएक जमीन की ओर गोता लगा देते। धरती से टकराने पर उनकी मौत हो जाती। उस रात पेट्रे गाँव की पूरी धरती चिड़ियों से ढक गयी थी। जुलाई 1816 में लुईशियाना में भी सामूहिक रूप से पक्षियों ने आत्मोत्सर्ग किया।

प्रकृति भी कोई कम रहस्यमय नहीं है। इसमें असंख्य ऐसी विलक्षणताएँ भरी पड़ी हैं, जिनका रहस्य वैज्ञानिक अभी तक नहीं जान पाये।

कहा जाता है कि रूस में सेन्ट्रल आराकुम मरुस्थल में जब जोर की हवाएँ चलती हैं तब वहाँ से चीखने, चिल्लाने रोने, गाने की भिन्न-भिन्न ध्वनियाँ निकलती हैं। जार्जिया, रूस के त्स्वालतुवों नामक स्थल पर एक प्रकृति निर्मित गुफा है, जिसमें विभिन्न आकार के प्रकृति ने इन सुन्दर कमरों को किस प्रकार बनाया? इसे देखने आज भी पर्यटक दूर-दूर से आते हैं। चाँगचुन (चीन) में हुनान विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों ने एक ऐसे पेड़ की खोज की है, जिसके प्रत्येक अवयव से प्रकाश निकलता है। इसकी छाल को उतार कर अन्यत्र लगा देने पर भी इसके प्रकाश में कमी नहीं आती। लगातार एक हल्की नीली रोशनी इससे निकलती रहती है। वृक्ष की ऊँचाई करीब दस मीटर है। वैज्ञानिक प्रकाश का रहस्य जानने केक लिए प्रयत्नशील हैं।

बहुत समय पूर्व कोरिया में जब राजतंत्र था, तो एक बार चीनियों ने उस पर आक्रमण कर दिया। यद्यपि कोरियाई सैनिकों ने उनका बहादुरी पूर्वक समाना किया, मगर चीनियों के सामने वे टिक न सके। युद्ध में कोरियाई राजा मारा गया, तो सिपाहियों को भी हिम्मत टूट गई। चीनी सेना धीरे-धीरे राजमहल की ओर बढ़ने लगी। सूचना जब अन्तपुर में रानियों तक पहुँची तो उनने शत्रु पक्ष को आत्म समर्पण करने की तुलना में ससम्मान मर जाना उचित समझा और बगल में बह रही नहीं में कूद कर आत्महत्या कर ली। तब से उन 70 रानियों की स्मृति में नदी तट पर हर वर्ष 70 पौधे उगते, बढ़ते और समय पर फूलते भी हैं और ठीक आत्महत्या वाले दिन, निश्चित समय पर वे सभी फूल एक साथ नदी जल में गिर पड़ते हैं। इस दिन नदी तट पर दूर दूर से लोग इस अलौकिक दृश्य को देखने के लिए उपस्थिति होते हैं। प्रकृति क्यों इस घटना को अविस्मरणीय बनाना चाहती है, यह समझ में नहीं आता।

ऐसी अनेकानेक घटनाएँ आयेदिन घटती रहती हैं। यदि इनका रहस्य जाना जा सके, तो जीवन और प्रकृति के उस पहलू को हम समझने में सफल हो सकते हैं, जो अब तक अविज्ञात हैं। इन्हें मात्र अपवाद कर कर नहीं टाला जा सकता। यह तो मात्र वैज्ञानिकों द्वारा की गयी बहाने बाजी ही कही जायेगी। अविज्ञात की ढूँढ़-खोज ही तो नये आविष्कारों का माध्यम बनती है। हो सकता है, ऐसे कई रहस्य हों, जिनकी पृष्ठभूमि पूर्णतः विज्ञान सम्मत हो।


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