सही अर्थों में भारत का रत्न

March 2002

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‘भारत रत्न’ उनके लिए देश की सरकार द्वारा प्रदत्त सम्मान भर नहीं, वरन् उनके महान् व्यक्तित्व का परिचय और पर्याय है। यह सुपरिभाषित सच देश के मिसाइल कार्यक्रमों के पितामह डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम यानि अबुल फकीर जैनुल आबेदीन के बारे में है। देश के सुरक्षा कार्यक्रमों के लिए उनके महत्त्वपूर्ण योगदान से राष्ट्र का जन-जन परिचित है। अभी हाल में ही राष्ट्र के प्रायः सभी समाचार पत्रों ने प्रमुखता से यह समाचार प्रकाशित किया, कि डॉ. अब्दुल कलाम ने देश के केन्द्रीय मंत्री के समकक्ष सुविधाओं और अधिकारों वाला भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार वाला पद छोड़ दिया है। परन्तु उनके इस पद त्याग के पीछे जो प्रेरक कथा है, उससे शायद ही कोई परिचित हो।

दरअसल पिछले समय जब भारत ने पोखरण परमाणु विस्फोट किया था, उस समय उस पर कई देशों ने कई तरह के प्रतिबन्ध लगाए। प्रतिबन्ध लगाने वाले इन देशों में सबसे प्रमुख देश अमेरिका रहा। उसके इस पक्षपात पूर्ण रवैये से कई भारत भक्तों की भावनाएँ आहत हुई। इन्हीं में से एक भारतीय मूल का एक सोलह वर्षीय किशोर भी है। जो इन दिनों अमेरिका के अटलाँटा शहर में रह रहा है। इस किशोर ने डॉ. कलाम को इन्हीं दिनों एक चिट्ठी लिखी। जिसमें उसने कहा, ‘मैं उस दिन भारत के गीत गाऊँगा, जब वह भी अमेरिका की ही तरह दूसरे देशों पर प्रतिबन्ध लगाने की हैसियत में होगा।’ इस हृदय स्पर्शी एवं भावनाओं से भरे-पूरे पत्र में जो दर्द और चुनौती छिपी थी, उसे डॉ. कलाम ने बखूबी पहचाना।

इसी के साथ उनके मन में एक महान् संकल्प जगा, कि वह देश में प्रतिभावान वैज्ञानिकों की एक नई पीढ़ी तैयार करेंगे। ऐसे वैज्ञानिक जो प्रतिभाशाली होने के साथ ही देश भक्त भी हो और राष्ट्र की गौरव पताका को विश्व गगन में फहरा सके। बस इसी संकल्प के साथ उन्होंने निश्चय किया अपने पद को त्यागने का, सुविधा, साधनों एवं प्रतिष्ठ के मोह को छोड़ने का। उनका यह त्याग यूँ तो असाधारण है, पर उनके व्यक्तित्व की तुलना में अतिसाधारण है।

पिछले दिनों उनकी विदाई समारोह का आयोजन हुआ। इसमें प्रधानमंत्री समेत अनेक मंत्रियों, साँसदों एवं वैज्ञानिकों ने अपनी भागीदारी की। इस अवसर पर डॉ. अब्दुल कलाम ने कहा- मैं अब नयी पीढ़ी की पौध को खाद-पानी देकर विश्व के वैज्ञानिक क्षितिज पर लहलहाने का अवसर प्रदान करने के लिए जुट रहा हूँ। मुझे आज भारत के वैज्ञानिक भविष्य को लेकर आशाओं का ऐसा उछाल दिखाई दे रहा है, जिससे अनेक भाभा, सी.वी. रमन एवं नर्लीकर पैदा हो सकते हैं। उन्होंने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बताया, कि मैं नन्हें वैज्ञानिकों की वैज्ञानिक सोच को आपस में जोड़ने का प्रयास करूंगा।

सचमुच ही समूचे राष्ट्र के लिए सम्माननीय डॉ. अब्दुल कलाम वाणी और शब्दों से नहीं बल्कि अपने कर्मों एवं कर्त्तव्यों से अपना परिचय देने के लिए विख्यात हैं। अग्नि, त्रिशूल और पृथ्वी जैसी मिसाइलें उन्हीं की मेधा का परिचय देती हैं। अब जब वह नई चुनौती को स्वीकार करके अपने कर्त्तव्य क्षेत्र में उतरे हैं, तो यहाँ भी वह पहले जैसी चमक पैदा करेंगे, जो उन्हीं की ही तरह देशभक्त महान् वैज्ञानिकों के रूप में समूचे विश्व को दिखाई देगी। यह इक्कीसवीं सदी में उदय हो रहे उज्ज्वल भविष्य के सूर्य की प्रथम किरण है। जो डॉ. अब्दुल कलाम की राष्ट्र निष्ठ के रूप में दिखाई दे रही है। वह आधुनिक भारत के ऋषि हैं, जो अब अपने जैसे ही अनेक ऋषियों को गढ़ने-निखारने के लिए चल पड़े हैं। अहंकार विहीन प्रतिभा जब अपने चरमोत्कर्ष को छूती है, तो वहाँ ऋषित्व प्रकट होता है। उनमें वही हो रहा है। उनके द्वारा किया जा रहा यह प्रयास, भारत देश के पुनः विश्वगुरु बनने की शुरुआत है।


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