प्रकृति के संग हुलसने का पर्व : होली

March 2002

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शीतल सुगन्ध से बौराया पवन मन्द-मन्द बहने लगा है। और सारी सृष्टि पुलकित होकर उल्लास, नई उमंग और उत्साह में झूम उठी है। नगर में, गाँव-गाँव में, डगर-डगर पर मस्ती की धूम मचाता हुआ रंगों की पिचकारी लिए अलबेला फागुन निकल पड़ा है आज होली खेलने। कहीं ऊषा दिन के माथे पर रोली लगा रही है, तो कहीं आकाश में सन्ध्या निशा के ऊपर गुलाल और सितारे बरसा रही है। बड़ी मधुर और प्रेम-सौहार्द्र की भावनाओं की प्रतीक है होली। रंगों की सतरंगी दुनिया के बीच मानवता की अनूठी झलक दिखाई देती है इस दिन। भारत की इस सम्मोहक परम्परा को अन्य देशों ने भी अपने-अपने ढंग से सहेजने को कोशिश की है। इसके नाम भी अलग-अलग देशों में अलग-अलग हो गए हैं। परन्तु उल्लास की मूल भावना एक समान है।

प्राचीन रोम में ‘साटर ने लिया’ के नाम से होली की ही भाँति एक उत्सव मनाया जाता था। उन दिनों यह उत्सव अप्रैल माह में पूरे सात दिनों तक मनाया जाता था। इस दौरान दासियों को भी काफी छूट मिल जाती थी। वे इन दिनों आपस में हंसी-मजाक तो करती ही थी, अपने स्वामियों की भी हंसी उड़ाने में संकोच नहीं करती थीं। वे अपने में से ही किसी को नकली स्वामी के रूप में चुनती और उससे मूर्खतापूर्ण आज्ञाएँ जारी करवाती थीं।

आज भी रोम में ‘रेडिका’ नाम से एक त्यौहार मई में मनाया जाता है। इसमें किसी ऊँचे स्थान पर काफी लकड़ियाँ इकट्ठी कर ली जाती हैं और उन्हें जलाया जाता है। इसके बाद लोग झूम-झूम कर नाचते-गाते हैं एवं खुशियाँ मनाते हैं। इस अवसर पर आतिशबाजी के खेल भी खेले जाते हैं। इटली वासियों की मान्यता के अनुसार यह समस्त कार्य अन्न की देवी फ्लोरा को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है।

पश्चिमी दर्शन के पितामह कहे जाने वाले सुकरात की जन्म भूमि यूनान में भी लगभग इसी प्रकार का समारोह ‘मे पोल’ नाम के उत्सव में होता है। यहाँ पर भी लकड़ियाँ इकट्ठी की जाती हैं और उन्हें जलाया जाता है। इसके बाद लोग झूम-झूम कर नाचते-गाते हैं। इस अवसर पर उनकी मस्ती देखते ही बनती है। यहाँ पर यह उत्सव यूनानी देवता ‘टायनोसियस’ की पूजा के अवसर पर आयोजित होता है।

कुछ इसी तरह का उत्सव मनाने की परम्परा जर्मनी में भी है। यहाँ के रैनलैण्ड नाम के स्थान पर होली जैसा त्यौहार एक नहीं पूरे सात दिनों तक मनाया जाता है। इस समय लोग अटपटी पोशाक पहनते हैं और अटपटा व्यवहार करते हैं। कोई भी किसी तरह के बिना किसी लिहाज के मजाक कर लेता है। बच्चे-बूढ़े सभी एक-दूसरे से मजाक करते हैं। इन दिनों किसी तरह के भेद-भाव की कोई गुँजाइश नहीं रह जाती। इस दौरान की गई मजाक का कोई भी व्यक्ति बुरा नहीं मानता।

बेल्जियम में भी कुछ स्थानों पर होली जैसा ही उत्सव मनाने का रिवाज है। इस हंसी-खुशी से भरे त्यौहार में पुराने जूते जलाए जाते हैं। और सब लोग आपस में मिलकर हंसी-मजाक करते हैं। जो व्यक्ति इस उत्सव में शामिल नहीं होते, उनका मुँह रंगकर उन्हें गधा बनाया जाता है और उनका जुलूस निकाला जाता है। इस अवसर पर कोई किसी की कही गई बातों का बुरा नहीं मानता। बस चारों ओर ठहाकों की गूँज ही सुनाई देती है।

अमेरिका में होली जैसे ही एक मस्ती से भरे त्यौहार का नाम है- होबो। इस त्यौहार के अवसर पर एक बड़ी सभा का आयोजन होता है, जिसमें लोग तरह-तरह की वेशभूषा पहनकर आते हैं। इस समय कसी भी औपचारिकता पर ध्यान नहीं दिया जाता। मस्ती में झूमते हुए लोग पागलों जैसा व्यवहार करने लगते हैं। वेस्टइंडीज में तो लोग होली को होली की ही भाँति मनाते हैं। इस अवसर पर यहाँ तीन दिनों की छुट्टी होती है। और उस अवधि में लोग धूम-धाम से त्यौहार मनाते हैं।

पोलैण्ड में होली के ही समान ‘अर्सीना’ नाम का त्यौहार मनाया जाता है। इस अवसर पर लोग एक दूसरे पर रंग डालते हैं। और एक-दूसरे के गले मिलते हैं। पुरानी शत्रुता भूलकर नए सिरे से मैत्री सम्बन्ध स्थापित करने के लिए यह श्रेष्ठ उत्सव माना जाता है। चैकोस्लोवाकिया में ‘बलिया कनौसे’ नाम से एक त्यौहार बिल्कुल होली के ढंग से ही मनाया जाता है। इस अवसर पर लोग आपस में एक-दूसरे पर रंग डालते हैं और नाचते-गाते हैं।

अफ्रीका महाद्वीप के कुछ देशों में ‘ओमेना बोंगा’ नाम से जो उत्सव मनाया जाता है, उसमें हमारे देश की होली के समान ही एक जंगली देवता को जलाया जाता है। इस देवता को ‘प्रिन बोंगा’ कहते हैं। इसे जलाकर नाच-गा कर नई फसल के स्वागत में खुशियाँ मनाते हैं। मिश्र में भी कुछ होली की ही तरह नई फसल के स्वागत में आनन्द मनाते हैं। इस आनन्द से ओत-प्रोत त्यौहार का नाम ‘फालिका’ है। इस अवसर पर पारम्परिक हंसी-मजाक के अतिरिक्त एक अत्यन्त आकर्षक नृत्य एवं नाटक भी प्रस्तुत किया जाता है।

सूर्योदय के देश जापान में भी होली के रंग की छटा निखरती है। वहाँ यह त्यौहार नयी फसल के स्वागत के रूप में मनाया जाता है। मार्च के महीने में मनाए जाने वाले इस त्यौहार में जापान निवासी उत्साह से भाग लेते हैं। और अपने नाच-गाने एवं आमोद-प्रमोद से वातावरण को बड़ा आकर्षक और मादक बना देते हैं। इस अवसर पर खूब हंसी-मजाक भी होते हैं।

श्रीलंका में तो होली का त्यौहार बिल्कुल अपने देश की ही तरह मनाया जाता है। वहाँ बिल्कुल ठीक अपनी होली की ही भाँति रंग-गुलाल और पिचकारियाँ सजती हैं। हवा में अबीर उड़ता है। लोग सब गम और गिले-शिकवे भूलकर परस्पर गले मिलते हैं। अपनी मित्रता एवं हंसी-खुशी का यह त्यौहार श्रीलंका में अपनी गरिमा बनाए हुए है।

थाईलैण्ड में इस त्यौहार को ‘साँग्क्रान’ कहते हैं। इस अवसर पर थाईलैण्ड के निवासी मठों में जाकर वहाँ भिक्षुओं को दान देते हैं। और आपस में एक-दूसरे पर सुगन्धित जल छिड़कते हैं। इस पर्व पर वृद्ध व्यक्तियों को सुगन्धित जल से नहला कर नए वस्त्र देने की परम्परा है। परस्पर के हंसी-मजाक, चुहल-चुटकुले इस त्यौहार को एकदम होली की भाँति संवार देते हैं।

अपने पड़ोसी देश बर्मा में होली के त्यौहार को ‘तिजान’ नाम से जाना जाता है। यहाँ पर भारत देश के समान ही पानी के बड़े-बड़े ड्रम भर लिए जाते हैं और उनमें लोग रंग तथा सुगन्ध घोल कर एक-दूसरे पर डालते हैं। मारीशस में तो होली का त्यौहार भारत के समान ही मनाया जाता है। वहाँ पर इसकी तैयारी 15 दिन पहले से ही शुरू हो जाती है। ये पन्द्रह दिन चारों ओर हंसी-ठहाकों की मधुर गूँज खनकती रहती है।

हंसी की यह खनक अपने देश में हो या फिर देश की सीमाओं के पार एक सी है, एकदम एक है। विश्व में बिखरी हंसी की यह छटा देखकर यही कहा जा सकता है कि होली एक है हाँ उसके रंग अवश्य अनेक है। ये रंग चमकते-दमकते रहे- इसके लिए हमें और हम सबको इसका ध्यान रखना होगा- कि कहीं हम अपने किसी व्यवहार से इन्हें बदरंग न कर दें। इस साँस्कृतिक त्यौहार की गरिमा जीवन की गरिमा में है। इस त्यौहार पर मन को तो हुलसना ही है, उसे हुलसना भी चाहिए, पर प्रकृति के संग-संग। उसे हर तरह की विकृति से नाता तुड़ाकर प्रकृति में- प्रकृति के रंगों में रमना चाहिए। तब वह होली के अवसर पर कुछ इस तरह से गुनगुना उठेगा-

लाल-लाल टेसू फूल रहे फागुन संग होली के रंग-रंगे, छटा-छिटकाए है वहाँ मधुकाज आए बैठे मधुकर पुँज मलय पवन उपवन वन छाए हैं हंसी-ठिठोली करै बूढे ओ बारे सब, देखि-देखि इन्है कवित्त बनि आयो है।


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