रुद्र का अभिषेक आओ! फिर करें। मुँडमाला में समर्पित सिर करें॥
सिरफिरों के सिर उतारे जा रहे अब। उन्हें काटे और छाँटे जा रहे अब। हम सिपाही विचारों की क्राँति के। श्रेष्ठ चिंतन को, नुकीला शर करें॥
आज बौद्धिक क्राँति ही बस चाहिए। सद्विचारों भरा तरकश चाहिए॥ चलो! जनमानस जगाने के लिए। प्रयासों में क्राँति का स्वर करें॥
अशिव से हैं ग्रसित व्यक्ति, समाज सब। कर सकेंगे मुक्त अब तो सदा शिव॥ सप्तक्राँति का बजाकर अब बिगुल। सृजन-सैनिक, तीव्र-क्राँति स्वर करें॥
हो सामाजिक क्राँति, नैतिक क्राँति से। मुक्ति दुर्व्यसनों कुरुढि, भ्राँति से॥ सदाचारी, मोरचों पर आ डटें। दुराचारी, गोल खुद विस्तार करें॥
तभी सार्थक हो कि शिव की साधना। लोकमंगल-साध्य की आराधना। लोकमंगल के लिए शिव-साधना। लोकसेवी समर्पित होकर करें॥
-मंगलविजय ‘विजयवर्गीय’
*समाप्त*