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March 2002

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नाम-जप कर लेने का मात्र से परमार्थ प्रयोजन सिद्ध हो जाएगा, यह सोचते रहना, सस्ते नुस्खों से मन बहलाते रहना उचित नहीं। हमें यथार्थवादी होना पड़ेगा। जीवन-साधना के प्रधान अंग परमार्थ को अपनाना पड़ेगा। परम स्वार्थ का स्वरूप आत्मनिर्माण है, जिसमें लोकमंगल के लिए सेवाधर्म अपनाना, अपनी परोपकार परायण सेवा प्रवृत्ति का परिचय देना निताँत आवश्यक है।

-परमपूज्य गुरुदेव


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