जो समेटते हैं, वे बड़े होने पर भी भर्त्सना सहते हैं (Kahani)

March 2002

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समुद्र में बहुत पानी था, सो पथिक अधिक लाभ की आशा से उसके तट पर पहुंचा, किंतु अंजलि होठों तक ले जाते ही देखा, वह तो बहुत खारी है। पथिक प्यासा ही लौट गया।

कुछ दूर तक छोटी नदी थी। पिया तो पाया मीठा और ठंडा जल।

बड़े के पास खारी, छोटे के पास मीठा, इस भेद को समझने के लिए उसने बुद्धि दौड़ाई।

नियति ने कहा, “जो बाँटते हैं, उनकी मिठास सराही जाती है। जो समेटते हैं, वे बड़े होने पर भी भर्त्सना सहते हैं।”


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