सम्मिलित प्रयास जरूरी

March 2002

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वह रात बड़ी भयावह थी। पहाड़ों के ऊपर तूफानी घटाएँ घिर आयीं थीं। बिजली कड़कने लगी। बरसात इतनी हुई कि नाले भर गए और दरिया से जा मिले। दरिया नीचे घाटियों में होता हुआ। तेजी से बहने लगा। उसके तेज बहाव ने हर चीज को आक्रान्त कर दिया। इसी उथल-पुथल में एक चट्टा से एक बहुत बड़ा पत्थर टूट गया। वह कुछ दूर भयभीत सा तंग पहाड़ी सड़क के ऊपर लटका रहा। फिर एक भयानक आवाज के साथ सड़क के बीचों-बीच आ गिरा।

रात बीती, सुबह हुई। आकाश पर चमकीला सूर्य निकला। ओस की बूँदें पेड़ के पत्तों पर जगमगाने लगीं। घास जो दब गयी थी, फिर सिर उठाने लगी। इतने में गाँव से एक छकड़ा प्रकट हुआ। उसे नुकीले सींगों वाले दो काले बैल खींच रहे थे। छकड़े के अन्दर एक आदमी बैठा अपनी धुन में कोई पहाड़ी लोकगीत गा रहा था। वह गाँव का दुकानदार था। जो अपनी दुकान का समान खरीदने शहर जा रहा था। मोड़ पर पहुँचकर, जहाँ बड़ा पत्थर पड़ा हुआ था, उसने छकड़ा रोक लिया। दरअसल पत्थर ने पूरा रास्ता रोक रखा था। बांई ओर दरिया बह रहा था और दांई ओर ऊँची चट्टानें अपना सीना ताने खड़ी थीं।

दुकानदार पहले तो छकड़े में बैठा थोड़ी देर सिर खुजाता रहा। फिर नीचे उतरकर पत्थर के पास गया। पत्थर को हटाने के लिए उसने कई तरकीब अजमाई, पर पत्थर हिला तक नहीं। यह मुझसे नहीं हटेगा। उसने सोचा- किसी ऐसे आदमी की प्रतीक्षा करनी पड़ेगी, जो मुझसे ज्यादा शक्तिशाली हो। यह सोचकर वह धरती पर बैठ गया। उसने एक लकड़ी उठायी और उससे धरती पर फूल-पत्तियाँ बनाने लगा।

थोड़ी देर बाद एक दूसरा छकड़ा वहाँ आ पहुँचा। उस पर जलाने की लकड़ियाँ लदी हुई थी। लकड़ी वाले ने दुकानदार से कहा- अरे भाई, तुमने अपना छकड़ा सड़क के बीचों-बीच क्यों खड़ा कर रखा है? इसे एक तरफ करो, ताकि मैं गुजर सकूँ। मुझे जल्दी है। दुकानदार बोला- तुम्हें जल्दी है, तो पहले यहाँ आकर यह चट्टान हटाओ।

कैसी चट्टान? उसने हैरत में पूछा। यहाँ आओ और देखो। छकड़ों के आगे पड़ी हुई है। लकड़ी वाले नीचे उतरकर पत्थर को देखा और फिर अपनी आस्तीनें समेट कर पत्थर को दाएँ-बाएँ हिलाने की कोशिश करने लगा। पर पत्थर नहीं हिला। यह अपने वश की बात नहीं, वह सिर हिलाता हुआ बोला- हमें किसी शक्तिशाली आदमी की प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। वही हमारा रास्ता साफ करेगा।

लकड़ीवाला दुकानदार के पास में जाकर बैठ गया। अभी ज्यादा देर नहीं हुई थी कि एक घोड़ागाड़ी वाला वहाँ आ पहुँचा। वह काफी बूढ़ा था, उसकी कमर झुकी हुई थी। वह काफी बेदर्दी से घोड़े पर चाबुक बरसा रहा था। जब उसे पता चला कि दोनों छकड़े यहाँ क्यों खड़े हुए हैं, तो वह अनाप-शनाप बकता हुआ अपनी गाड़ी से उतरा और थोड़ी देर पत्थर के इर्द-गिर्द चहलकदमी की, फिर चुपचाप उन दोनों के पास बैठ गया।

थोड़ी देर बाद दो छकड़े और आए। उन पर कम्बल और मिट्टी के बरतन लदे हुए थे। उनके मालिकों को बाजार पहुँचने की जल्दी थी। जब उन्हें पता चला कि रास्ता बन्द है तो वे बड़े परेशान हुए। उनमें से एक बड़ा क्रोधी था। वह पत्थर को सजा देने के लिए उस पर चाबुक बरसाने लगा। समय बीतता रहा। दोपहर हो गयी। अब वहाँ एक पूरा काफिला जमा हो चुका था। वह एक के बाद एक अपनी शक्ति परखते रहे, पर उनमें से कोई भी पत्थर को न हिला सका।

इतने में गेरुआ वस्त्र पहने एक संन्यासी उधर से गुजरे। आस-पास के पहाड़ी गाँवों के लोग उन्हें पहचानते थे। सभी ने श्रद्धा सहित उन्हें प्रणाम किया। ये कोई और नहीं विश्ववन्द्य स्वामी विवेकानन्द के गुरुभाई एवं श्री रामकृष्ण परमहंस के शिष्य स्वामी अखंडानंद थे। वह इन दिनों अपनी एकान्त साधना के लिए यहाँ आए हुए थे। जब उन्होंने इन सबको वहाँ खड़े हुए, परेशान देखा, तो बोले- तुम लोग अपनी बुद्धि का उपयोग क्यों नहीं करते।

महाराज, हमें बुद्धि की नहीं शक्ति की आवश्यकता है। उनमें से एक व्यक्ति ने कहा, हम सब पत्थर को हटाने का प्रयत्न कर चुके हैं। पर इसे हटाना तो दूर हम लोग हिला भी नहीं सके।

उसका उत्तर सुनकर अखण्डानन्द जी महाराज थोड़ा हंसे और बोले- अच्छा अब तुम लोग सब मिलकर मेरे साथ आओ। उनकी बात मानकर सब लोग एक साथ आ जुटे। स्वामी जी भी उनके साथ थे। थोड़ी ही देर में पत्थर नीचे लुढ़कता हुआ भयानक आवाज के साथ गहरे खड्ड में गिर गया और टुकड़े-टुकड़े हो गया।

सबने इसे स्वामी जी का चमत्कार माना। उनकी भोली-भाली बातें सुनकर वह हंसने लगे और फिर उन्होंने उन सबसे कहा- यह चमत्कार तो जरूर है, पर मेरा नहीं, तुम सबकी सम्मिलित शक्ति का है। समस्याएँ घर-परिवार की हो या गाँव-समाज की अथवा फिर राष्ट्र एवं विश्व की। सब लोग मिल-जुलकर प्रयास करेंगे, तो सार्थक समाधान मिलने में देर नहीं लगेगी। स्वामी जी की बातें सुनकर लगा कि उनके छकड़ों के गुजरने के लिए ही नहीं जिन्दगी के गुजरने के लिए भी रास्ता साफ हो गया है। उन्हें अब समझ में आ गया था, कि समस्याओं को सुलझाने के लिए जरूरत किसी मसीहा की नहीं, बल्कि सम्मिलित प्रयास की है- एक जुट होकर किए जाने वाले पुरुषार्थ की है।


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