जीवन विद्या का आलोक केंद्र -हमारा देवसंस्कृति विश्वविद्यालय

March 2002

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देवसंस्कृति विश्वविद्यालय की भूमि एवं भवन उत्तरांचल प्राँत के देहरादून जनपद में हरिद्वार से सात किलोमीटर दूर हरिद्वार-ऋषिकेश मार्ग पर शाँतिकुँज से आधा किलोमीटर दूरी पर स्थित है। दिसंबर 21 के तृतीय सप्ताह में शाँतिकुँज के आवेदन पर उत्तराँचल कैबिनेट के निर्णय लिया गया कि अपने में अद्वितीय भारतवर्ष के पहले उस विश्वविद्यालय को ‘डीम्ड यूनिवर्सिटी’ के रूप में स्थापित करने हेतु एक अधिनियम बनाकर अखिल विश्व गायत्री परिवार द्वारा इसे संचालित किया जाए। अपने पाठ्यक्रम भी यह विश्वविद्यालय स्वयं बनाएगा एवं आर्थिक दृष्टि से स्वावलंबी होगा, किसी प्रकार की आर्थिक सहायता राज्य या केंद्र सरकार से नहीं लेगा। महामहिम राज्यपाल उत्तराँचल के हस्ताक्षर एवं गजट अनुज्ञापन के साथ ही अब देवसंस्कृति विश्वविद्यालय अस्तित्व में आ गया है। इस वर्ष शेष भवनों के निर्माण के बाद आगामी वर्ष से इसके विधिवत् प्रारंभ होने की संभावना है। तब तक महाविद्यालय जो विगत वर्ष आरंभ किया गया था, चलता रहेगा।

परमपूज्य गुरुदेव के सपनों के इस विश्वविद्यालय का भूमिपूजन वीतराग स्वामी कल्याणदेव जी की उपस्थिति में निवृश्रमान शंकराचार्य (भानपीठाध्यक्ष), स्वामी श्री सत्यमित्रानंद जी, परमार्थ निकेतन के प्रमुख मुनि श्री चिदानंदजी तथा प्रभुप्रेमी संघ (अंबाला) के प्रमुख जूनापीठाधीश्वर स्वामी श्री अवधेशानंदजी गिरी महाराज सहित प्रायः पचास हजार परिजनों द्वारा 23 मई 2000 को किया गया था। अपनी इस त्रैवर्षीय यात्रा में इस परिसर में प्रायः बारह करोड़ रुपये का निर्माण हो चुका है एवं एक चौबीस कक्षों वाला भाषा-धर्म विद्यालय भवन, एक फार्मेसी व प्रायः डेढ़ सौ आवास बनकर तैयार है।

विश्वविद्यालय की स्थापना जीवन विद्या के आलोक केंद्र के रूप में की जा रही है। ऋषि-मुनियों की तप-साधना द्वारा संस्कारित उत्तराँचल की इस देवभूमि की अपनी विशिष्ट साँस्कृतिक पृष्ठभूमि रही है। गंगा की गोद व हिमालय की छाया में स्थित गायत्रीतीर्थ रूपी तपोभूमि समूचे विश्व के लिए दिव्य आलोक एवं प्रेरणा का केंद्र रही है। न केवल उत्तराँचल रूपी पर्वतीय प्राँत के ग्रामीण अंचल की सभी समस्याओं को वरन् सारे भारत व विश्व की आज की नैतिक मूल्यों के संकट से पैदा हुई परिस्थितियों को स्पर्श करते हुए इसके विविध कार्यक्रम राष्ट्र के साँस्कृतिक उत्थान, सामाजिक नवोन्मेष एवं आर्थिक विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।

भारत की अतीतकालीन गौरव मात्र धर्म-दर्शन और अध्यात्म के सूत्र सिद्धाँतों पर आधारित नहीं था, बल्कि वान की विभिन्न धाराओं द्वारा पुष्ट भी था। याज्ञवल्क्य का यज्ञ विज्ञान, विश्वामित्र की गायत्री महाविद्या, पतंजलि का योग विज्ञान, गोरखनाथ का हठयोग, धन्वंतरि-चरक का आयुर्वेद, सुश्रुत की शल्यचिकित्सा कणाद का अणु विज्ञान, आर्यभट्ट-वाराहमिहिर का ज्योतिर्विज्ञान, तंत्रविज्ञान, अंकगणित आदि तपःपूत ऋषियों द्वारा अपनी कठोर साधना द्वारा गढ़े गए थे। ये सभी विद्याएं जीवन जीने की पर्याय-अध्यात्म विद्या की विभिन्न धाराएं थी। आज ये सभी विद्याएं लुप्तप्राय हैं शरीर रुग्ण, मन अशाँत, परिवार विखंडित, समाज विक्षुब्ध, विज्ञान घातक, राजनीति भ्रष्ट, देश आतंकित, धर्म जंजाल और शिक्षा आज अनुपयुक्त भार बनकर रह गए है। जीवन विद्याओं की उपेक्षा से ही यह स्थिति पैदा हुई है।

देवसंस्कृति विश्वविद्यालय इन विद्याओं के पुनरुज्जीवन एवं वैज्ञानिक प्रस्तुतीकरण के साथ सामयिक उपयोगिता प्रमाणित करने का कार्य करने जा रहा है। इसके अंतर्गत चार संकायों-साधना, शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वावलंबन के अंतर्गत प्रारंभिक दौर में भारतीय संस्कृति प्रधान विद्याएं जो ली जा रही है वे हैं वैज्ञानिक अध्यात्मवाद, सर्वधर्म समभाव, देवालय प्रबंधन, नैतिक एवं मूल्यपरक शिक्षा, शिक्षालय प्रबंधन एवं शिक्षकों का प्रशिक्षण, आयुर्वेद, योगविज्ञान, मंत्रविज्ञान, यज्ञविज्ञान, ज्योतिर्विज्ञान, औषधालय प्रबंधन, स्वास्यि संरक्षण प्रशिक्षण, ग्राम प्रबंधन, स्वदेशी स्वावलंबन पर आधारित अर्थप्रबंधन तथा गोविज्ञान।

प्रयास यह किया जाएगा कि यहाँ से प्रशिक्षित स्नातक, परास्नातक या शोधकर्ता आत्मावलंबी बन सकें एवं देवसंस्कृति के भारत के कोने-कोने एवं विश्वभर में विस्तार हेतु सक्षम बन सकें। यहाँ शोध-अनुसंधान की आधुनिकतम स्थापनाएं की जा रही है। जो विश्व में अभूतपूर्व स्तर की एक स्थान पर शोध में सहायक बनेंगी। भारतीय अध्यात्म को एवं जीवनमुक्त बनाने वाली विद्या को यहाँ सीखकर जो भी छात्र जाएंगे, वे अपनी शिक्षा को सही मायने में सार्थक बनाएंगे। भारत की व विश्वभर की सभी भाषाओं एवं धर्मों का (थियॉलाजी) प्रशिक्षण यहाँ दिया जाएगा तथा विदेशियों एवं संस्कृति पिपासु प्रवासी भारतीयों की, जिनकी संख्या प्रायः पाँच करोड़ है, शिक्षण की भी यहाँ व्यवस्था होगी। जन-जन की अपेक्षा के अनुरूप नालंदा-तक्षशिला स्तर का यह संस्कृति शिक्षण केन्द्र बन सके, इसके लिए सभी भावनाशीलों का भावभरा आह्वान है।


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