परमार्थ मानव जीवन का एक अत्यंत आवश्यक धर्म-कर्त्तव्य है। इसकी उपेक्षा करते रहने से अपनी आध्यात्मिक पूँजी घटती है, आत्मबल नष्ट होता है और अंतर्चेतना दिन-दिन निम्न स्तर की बनती चली जाती है। यही तो पतन है।
-परमपूज्य गुरुदेव